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छुट-पुटअफसाने . . . 38

 

बच्चों की अगले साल फिर दिसंबर की छुट्टियों में हमने मद्रास और रामेश्वरम जाने का प्रोग्राम बना लिया था। फिर वही रेलगाड़ी का लंबा सफ़र! पर इस बार हम सब हर तरह से तैयार थे। 

दिल्ली से सीधे हम मद्रास (चेन्नई) गए। वहाँ मेरी भाभी की बहन रहती थीं। उनकी बेटी “सपना” दक्षिण भारतीय फ़िल्मों की और बॉलीवुड की एक्ट्रेस थी। “फरिश्ते” हिंदी फ़िल्म में भी वह रजनीकांत के ऑपोजिट थी। उसके ब्लैक एंड वाइट आदम क़द फोटोस से घर की दीवारें भरी थीं। जिससे उनका घर कुछ अलग ही लग रहा था बच्चों को वहाँ बहुत अच्छा लगा, यह सब देख कर। 

वहाँ से हम महाबलीपुरम और गोल्डन बीच गए जो समुद्री तट था। जहाँ एक तामिल फ़िल्म की शूटिंग चल रही थी। ढेरों मटकों से सेट को सजाया गया था। दूसरी ओर भी अलग सेट लगे हुए थे। गोल्डन बीच शूटिंग के लिए मशहूर है क्योंकि वह प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। 

अगला पड़ाव “वेनम सेंटर” था! जहाँ विदेशियों ने साँपों का ज़हर निकालने की मशीनें लगाई हुई थीं। गाँव के लोग जंगलों से साँप पकड़ कर थैलों में लाते थे और इन्हें 5 या 10 रुपये में बेच जाते थे। गाँव वालों के लिए साँप हाथ से पकड़ना वहाँ पर आम बात थी। अद्भुत था, इतनी ढेर सारे साँपों को बड़ी सी हौदी में इकट्ठे रेंगते देखना। 

वहाँ तालाब जैसे पौंड में “एलीगेटर” भी थे। कुछ किनारों पर शायद धूप लेने के लिए लेटे हुए थे और बाक़ी तालाब के बीच में घूम रहे थे। इतने क़रीब से मगरमच्छ देखकर बच्चे बहुत रोमांचित हो रहे थे। बार-बार उनकी क्रीड़ा देख रहे थे। बच्चों के ज्ञान वर्धन के साथ-साथ हमारा भी ज्ञान वर्धन हो रहा था। 

अगले दिन हम सब मिलकर मद्रास के “मरीना बीच” गए। वहाँ तमिल ग़रीब महिलाएँ जगह-जगह स्टोव पर कच्चे केले के चिप्स तलकर बेच रही थीं गरमा गरम। इससे वहाँ गंदगी हो गई थी। हमें वह बीच बिल्कुल पसंद नहीं आया। लगा, समुद्र का किनारा और काली चट्टानों पर सिर पटकती लहरें अपना ही राग अलाप रही थीं . . . जबकि महाबलीपुरम का “गोल्डन बीच” मनभावन लगा था। वहाँ समुद्र की लहरें समुद्र की छाती पर कलोल करती हुई मधुर संगीत सुना रही थीं। 

लो जी अब, मद्रास से हम दक्षिण पूर्व किनारे 375 किलोमीटर दूरी पर रामेश्वरम के लिए ट्रेन में बैठ गए थे। बच्चों के साथ रामायण की बातें करते रहे और प्रभु राम का स्मरण होता रहा। हम बहुत भाग्यशाली थे जो उस जगह पर जा रहे थे जहाँ प्रभु राम के कभी चरण पड़े थे। श्री नरेश मेहता जी की “संशय की एक रात” लंबी कविता भी मेरे दिमाग़ में घूम रही थी! 

भारत की धरती पर समुद्र किनारे “मंडपम” शहर में पहुँचने पर रामेश्वरम जाने के लिए हमें “पंबन द्वीप” जाना था। वहाँ जाने के लिए हमें समुद्र पर बने एक लंबे पुल को ट्रेन से पार करना था। यह एक “रेल समुद्री पुल” था, जो 2000 मीटर लंबा था। इस पुल के दोनों और रेलिंग भी नहीं थी। देखने से ही डर लग रहा था। उन्होंने बताया कि यह दुनिया में सबसे लंबा और ख़तरनाक समुद्री पुल है यह 1914 में अँग्रेज़ों ने बनाया था। चारों ओर पानी ही पानी दिखता था केवल पानी और बीच में हमारी ट्रेन!! 

“जब ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना?” 

सो बैठ गए, उस हिलते-जुलते पुल के ऊपर चलती ट्रेन में हम सब। बंगाल की खाड़ी का नीला समुद्र और ऊपर स्वच्छ नीला आकाश –-दूऽ‍ऽऽर तक यही था! गाड़ी ज़रा भी हिलती तो, स्वाभाविक है सब को डर लगता था (आख़िर जान से बढ़कर क्या है?) लेकिन, यह मन का वहम था, जो लहरों के उफान को देखकर हो रहा था। थोड़ी ही देर में हम इसके अभ्यस्त हो गए थे। पुल के बीचों-बीच छोटे समुद्री जहाज़ के निकलने के लिए ज्वाइंट था। जो जहाज़ को रास्ता देने के लिए खुल जाता था। तब ट्रेन जहाँ की तहाँ खड़ी हो जाती थी और उसमें बैठकर जहाज़ निकलने का इंतज़ार करना होता था। यह भी दिलचस्प नज़ारा था। ऐसा हम पहली बार देख रहे थे। इसे “Rail Ship Sea Bridge” भी कहते हैं। 

पंबन द्वीप में पहुँचकर होटल में सामान रखकर हम लोग सीधे रामेश्वरम के “रामानाथा स्वामी मंदिर” में भगवान शिव के दर्शन के लिए चल पड़े थे। वहाँ पहले समुद्र में स्नान करना होता है, फिर मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। हम सब ने भी पहले समुद्र में स्नान किया, फिर भीतर रुख़ किया। 

भीतर पहुँचने के लिए बहुत लंबा और बेहद ख़ूबसूरत मूर्तियों वाला गलियारा था। कहते हैं उसके हज़ार खंभे हैं। वहाँ के पंडितों ने कहा कि आपको 22 कुंडों के स्नान करने पड़ेंगे दर्शन से पहले। अपना गाईड साथ लेकर हम चल पड़े थे स्नान के लिए। हमारा गाईड हाथ में पकड़ी बाल्टी और रस्सी से कुंड रूपी कुएँ से पानी निकालता था और हम पाँचों पर डाल देता था। 22 स्नान पूरे होने के बाद हम लोग साथ लाए बैग में से सूखे कपड़े पहनकर दर्शन के लिए पंक्ति में जाकर लग गए थे, जैसा वहाँ का चलन था। वहाँ दो तरफ़ रस्सियाँ लगी थीं। हम भी वहीं खड़े हो गए थे क्योंकि अभी लाइनें भी लंबी नहीं थी लोग कम थे। 

हम बाईं तरफ़ वाली लाइन में थे। अचानक पीछे से बहुत लोगों के आने से ज़ोर का धक्का लगा और मैं उस रस्सी के बाहर बाईं ओर जा गिरी। एकदम से घबरा गई थी मैं! उधर एक पर्दा लगा था। जब मैं उठी तो देखती हूँ कि मैं पर्दे के भीतर हूँ। स्वाति (मेरी 9 साल की बेटी) भी मेरे पीछे-पीछे वहीं आ गई थी। तभी पंडित जी ने मुझे उठा कर बैठाया और मेरे हाथ में मौली धागा बाँध दिया! मैं हैरान थी . . . मुझसे विधिवत पूजा भी करवाई। वहाँ एक मोटी-सी बहुत अमीर महिला गहनों से लदी पहले से बैठी हुई थी। पंडित जी ने मुझे भी साथ में वहीं बैठा लिया। असल में उस तरफ़ ₹5000 देने वाले लोग पूजा करते थे और हम तो ₹100 वालों में खड़े थे। मैं समझ नहीं पा रही थी यह कैसा धक्का था! 

ईश्वर की इस लीला पर मैं नतमस्तक हो, भक्ति के तीक्ष्ण आवेग से रोए जा रही थी और मेरे नेत्रों से जल धाराएँ बह रही थीं। मुझे कैसे अपने चरणों में मेरी श्रद्धा का मान रखने के लिए ईश्वर ने बुला लिया था। मेरा रोम-रोम सिहर उठा था। जब भी सोचती हूँ हैरान होती हूँ, मेरे साथ यह क्या लीला रची थी प्रभु ने!

स्वाति को साथ लिए दर्शन करने के बाद प्रभु के प्रेम में गद्‌गद्‌ हो जहाँ मैं खड़ी थी, वहीं रवि जी और दोनों बेटे मोहित रोहित भी दर्शन करके आ गए थे। 

एक पंडित जी ने बताया कि इस ज्योतिर्लिंग का महत्त्व 4 पीठों में से एक माना जाता है। काशी पीठ के दर्शन की तरह दक्षिण में रामेश्वरम के शिवलिंग दर्शन का महत्त्व है। 

हमारा अगला दर्शनीय स्थल था “गंधामाधाना पर्वतम्”! 

जो हमारे होटल से तीन-चार किलोमीटर पर था। अगले दिन हम वह देखने गए। यह वह पर्वत है, जो अब दो मंज़िला मंदिर के रूप में स्थापित है। जिसे हनुमान रामायण वर्णित घटना—लक्ष्मण के बेहोश होने पर संजीवनी बूटी के लिए हिमालय से कंधे पर उठाकर लाए थे। यहाँ पर एक चक्र के ऊपर श्री राम भगवान के पैरों के निशान बने हैं और उसकी बहुत मान्यता है। 

रामेश्वरम में यह सबसे ऊँची जगह है। जहाँ से पूरा रामेश्वरम दिखता है लगता था अनगिनत सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे हैं लेकिन ऊपर पहुँचकर ठंडी हवा के झोंकों में स्थिर रहना मुश्किल हो रहा था लगता था खड़े रहे तो हवा के झोंके हमें साथ ही उड़ा कर ले जाएँगे सू हवा की दिशा देखते हुए हम सब इकट्ठे होकर मंदिर के चारों तरफ़ बने चबूतरे पर बैठ गए थे श्री राम के चरणों में बैठना सुखद और स्वर्गीय अनुभव था। 

जिन दिनों पंजाब में ठंड से बुरा हाल होता है, वहाँ गर्मी लग रही थी और ठंडी हवा के झोंके मदमस्त कर रहे थे। वहीं हमने जो कुछ खाने को साथ लाए थे, बैठकर खाया और दो-तीन घंटे बिताकर वापस होटल आ गए थे। 

तमिलनाडु राज्य का विस्तारपूर्वक भ्रमण करके आत्म संतुष्ट होकर हम लौट आए थे पंजाब! भविष्य में कन्याकुमारी में भारत माता के चरणों पर माथा टेकने के सपने सँजोए और स्वामी विवेकानंद के मेडिटेशन सेंटर देखने की आस लिए . . .! 

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