छुट-पुट अफ़साने . . . एपिसोड–45
संस्मरण | स्मृति लेख वीणा विज ’उदित’15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
आप जैसे कई लोग अमेरिका में ही रहते हैं और अमेरिका जाते भी रहते हैं पर हर किसी के अपने संस्मरण हैं और अपने अनुभव। पाश्चात्य देशों की ओर पहली बार जाना और अंतर महसूस करना हम भारतीयों के विचारों में झंझावात खड़ा कर देता है। वही मिली जुली प्रतिक्रियाएँ ही तो आपके साथ साझा कर रही हूँ।
वाशिंगटन, डीसी
जॉन ऐफ़ कैनेडी एयरपोर्ट पर टोनी (छठी बहन) और उसके पति बासित हमें लेने आए हुए थे। टोनी के घर पहुँचे तो वहाँ बहनें एकत्रित थीं। (हम सात बहनें हैं) जो भी मेरे गले लग रही थी ख़ुशी के आँसुओं से आँखें धो रही थी, जो स्वाभाविक था। अगले दिन टोनी का जन्मदिन भी था सो सभी रात को वहीं रहे।
मैं टोनी का घर देख रही थी। टोनी के ‘सन-रूम’ में जहाँ सिर्फ़ शीशे लगे थे। भीतर ढेर सारे स्वस्थ पौधे थे। वहाँ एक ख़ूबसूरत (पीतल का) हिरण बीच में खड़ा था। ऐसा भान हुआ—मानो वही सोने का हिरण इनको अमेरिका ले आया है जिसके पीछे भगवान राम गए थे।
ख़ैर, यह मेरी सोच थी। सोच पर कोई पहरा तो नहीं होता ना! अगले दिन हमारा दिल्ली का हनीमून कपल—विनीत और मोना चावला भी पहुँच गए थे। घर काफ़ी बड़ा था और बहुत सुंदर था। उसके घर में नोटिस करने वाली चीज़ थी, काँच की पारदर्शक अलमारियों में थॉमस किनकेड की ओरिजन पेंटिंग प्लेट्स क्रमानुसार लगी हुई थीं। मेरे पूछने पर उसने बताया कि मैंने थॉमस किनकेड से पक्का प्रॉमिस ले लिया है कि वे जब भी कोई पेंटिंग बनाएँगे मुझे भेजेंगे और उनको पेमेंट भेज देती हूँ। टोनी की उत्कृष्ट रुचि देखकर गर्व अनुभव हुआ।
दिसंबर के अन्त में ठंड यहाँ अमेरिका में भी बहुत थी। टोनी की तीन बेटियाँ छोटी-छोटी डॉल्स, स्वीटी का बेटा साल भर का गोलू-मोलू इन सब ने हुडीज़ पहने हुए थे। शोभा के दोनों बेटे जवान थे। उषा यहाँ नहीं थी और पूनम अभी इंडिया से आई ही थीं।
बहनों का मिलना असीम सुख का अनुभव था। विनी और मोना ने क्योंकि आगे जाना था इसलिए दूसरे दिन ही शोभा के पति सुरेश जी हम चारों को वाशिंगटन घुमाने ले गए।
गोल गुंबद वाली कैपिटल बिल्डिंग बहुत ही शानदार इमारत है और अमेरिका की शान है। स्टैचू ऑफ़ अब्राहम लिंकन आठ स्तम्भों के पीछे एक कुर्सी पर अब्राहम लिंकन की बैठी हुई मूर्ति है। और व्हाइट हाऊस जहाँ विश्व के सबसे ताक़तवर प्रेसिडेंट का डेरा है, यह सब जगहें हमने इकट्ठे देखीं।
वाशिंगटन मॉन्युमेंट पिल्लर बहुत ख़ूबसूरत बना है। इसके चारों तरफ़ झंडे लगे हैं। यह अमेरिका के पहले प्रेसिडेंट जॉर्ज वाशिंगटन की याद में उनके साहस और आदर के लिए बनाया गया है। यह पिल्लर 555 फ़ीट ऊँचा तब 1889 में दुनिया की मानव-निर्मित सबसे ऊँची इमारत थी।
इसके बाद आर्लिंगटन में ‘आर्लिंगटन सिमिट्री’ देखने गए जहाँ, वहाँ के शहीदों को मृत्यु उपरांत सोने की जगह मिलती है और वहाँ उनका नाम लिखकर उन्हें अमर कर दिया जाता है। सिर अपने आप श्रद्धा से झुक गया था जैसे दिल्ली में इंडिया गेट जाने पर शहीदों के लिए श्रद्धा स्वयं आ जाती है।
स्मिथ सोनियन नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूज़ियम देखना ज़रूरी था। उस में कई तरह के डयानासोर के अस्थि पिंजर देख कर लगा—अच्छा ही हो गया इनकी प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। उन्हें तो देखने से ही डर लगता था। वहाँ विभिन्न प्रकार के छोटे बड़े हवाई-जहाज़ों के प्रारूप भी छत से लटक रहे थे, जिन्हें गर्दन उठाकर देखना पड़ता था। यह म्यूज़िमय बहुत ही ज्ञानवर्धक था। इसके बाद ‘हनीमून कपल’ विनीत और मोना बहामाज़ चले गए थे।
मेरी सबसे छोटी बहन स्वीटी का दूसरा बच्चा 31 दिसंबर की रात को होना था। 31 को वह हॉस्पिटल में थी। उसे हॉस्पिटल में मिलते हुए शोभा, सुरेश, रवि जी और मैं अटलांटिक सिटी के लिए रवाना हो गए थे क्योंकि हमने नववर्ष की पूर्व संध्या वहाँ जाकर मनानी थी। वहाँ टिकट लेकर भीतर जाना होता है, डिनर भी उसी में मिलता है लेकिन रवि जी बाहर नहीं खाते इसलिए वह अपने लिए दो केले साथ ले आए थे। उन्होंने वही खाए और हमने डिनर किया। उसके बाद हम लोग कसीनो में चले गए।
वहाँ मैं खेल रही थी मशीन पर और यह तीनों घूम रहे थे। अचानक, मेरी मशीन पर सिक्कों (coins) की वर्षा होने लगी और मैं $300 जीत गई। शोभा ने जल्दी जाकर उनको कैश कराया और मुझे सौ-सौ डॉलर दिखा के बोली, “दीदी उठ जा और मत खेल।” लेकिन मैंने बड़ी गेम खेलनी शुरू कर दी और उसमें सब हार गई। अपना शौक़ पूरा कर लिया लेकिन जुए का पैसा घर नहीं लाई, वहीं ख़त्म कर आई थी।
रात 12:00 बजे वहाँ छोटे-छोटे गिलासों में शैंपेन खोल कर दी जाती है। मैंने और रवि जी ने उनकी आँख बचाकर वहाँ पड़े गमलों में अपनी शैंपेन उड़ेल दी थी और और उस ख़ुशनुमा माहौल में एक दूसरे को हैप्पी न्यू ईयर करके वापस चल पड़े थे।
उधर स्वीटी का छोटा बेटा “भरत” उसी रात हुआ था। नॉर्मल डिलीवरी थी। सो अगले दिन उसके घर आने पर हम वहाँ पहुँचे तो वह किचन में खड़ी चिकन बना रही थी।
ऐसी होती है अमेरिका में डिलीवरी! हम उसे एकदम नॉर्मल और स्वस्थ देखकर अचंभित थे। हम भारत में तो बचपन से देख रहे थे कि “डिलीवरी” मतलब “हौआ”। औरतों के ढेरों नख़रे होते हैं। 40 दिनों तक जच्चा और बच्चा का ध्यान रखा जाता है, सोहर गाए जाते हैं।
आज उसके घर सब बहनें पहुँच गई थीं। सोहर की जगह अच्छा ख़ासा गाना-बजाना शुरू हो गया था रौनक़ लग गई थी। पुरानी फ़िल्मों के गाने शुरू हो गए थे। रवि जी और सुरेश डाइनिंग टेबल पर तबले की थाप भी दे रहे थे और बाक़ी सब अमृतजी पूनम, शोभा, टोनी, संजीव सब के साथ गाने भी गा रहे थे। जैसे:
“आजा रे अब मेरा दिल पुकारा
“यह रात भीगी भीगी ये मस्त फ़िज़ाएँ
“आजा सनम मधुर चाँदनी में हम
“रमैया वस्तावैया रमैया वस्तावैया
“याद किया दिल ने कहाँ हो तुम . . .। वग़ैरह वग़ैरह
बिल्कुल कटनी जैसा माहौल बन गया था। एकल भी, डुएट भी और ग्रुप सॉन्गस हो रहे थे। रात देर तक यह प्रोग्राम चला। इस तरह मौज-मस्ती में, कभी शोभा और कभी टोनी के घर भी महफ़िलें जमती रहीं। ऊषा दूर थी।
बाद में सुरेश जी ने व्हाइट हाउस के लिए ख़ास परमिशन लेकर हमें 20 जनवरी 1993को कैपिटल बिल्डिंग में अमेरिका के 42वें राष्ट्रपति . . . बिल क्लिंटन की swearing in ceremony अर्थात् शपथ समारोह दिखाया। क्योंकि सुरेश जी वहीं काम करते थे। यह वहाँ का ख़ास समारोह था। और हम बहुत क़िस्मत वाले थे कि इसे देख सके।
अब हम न्यू ऑरलियंस जा रहे थे, अपने घर। यानी कि देवर के घर, जो हमारे घर का बेटा था। अपने बेटे जैसे भाई को रवि जी ने बिज़नेस वीसा पर भेजा था क्योंकि वह कश्मीरी सामान का एक्सपोर्ट भी करते थे उन दिनों। हमारे चेहरे ख़ुशी से खिल गए थे। रवि जी के चेहरे पर एक बाप वाला गर्व दिखाई दे रहा था।
कुकू (जगदीश), मंजु और दोनों बेटियाँ रुचि, प्राची हमारे घर के लोग अब परदेस में थे। कुक्कू, मंजू, रवि जी और मैं हम चारों का मस्त ग्रुप था। ज़ोर-ज़ोर से म्यूज़िक लगाकर हम चारों कितनी-कितनी देर तक नाचते रहते थे। उनके प्रवासी मित्रों के घर हर दिन खाने पर भी जाना होता था!
एक रोचक प्रसंग यहाँ पर याद आ गया। माधुरी के घर डिनर था। खाने की बड़ी तारीफ़ की सब सहेलियों ने। असल में वह एक सब्ज़ी में नमक डालना भूल गई थी। झूठी तारीफ़ सुनकर रवि जी से बरदाश्त नहीं हुआ और उन्होंने कह दिया कि आपकी सहेली है। आप उसको सच क्यों नहीं बता रही हैं कि उसकी एक सब्ज़ी में नमक नहीं है। झूठी तारीफ़ क्यों कर रही हैं आप सब? वहाँ सूई पटक सन्नाटा हो गया। माधुरी ने चुप्पी तोड़ी और रवि जी को थैंक्स कहा। वहीं सहेलियों ने माधुरी को सफ़ाइयाँ देकर वादा किया कि भविष्य में कभी कोई झूठी तारीफ़ नहीं करेगा।
वहाँ बातों-बातों में पता चला कि मेरी बचपन की मित्र निशा जौहर के मामा जी के तीनों लड़के वहाँ थे। छोटा मुकेश जोली कुकू का बेस्ट फ़्रेंड था। माधुरी बीच वाले भाई की बीवी थी। दुनिया कितनी छोटी है ना। बड़े वाले तो कटनी भी आए हुए थे एक बार निशा के घर। जिन का दामाद वहाँ का गवर्नर बॉबी जिंदल था। माना जाए तो हम सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं किसी ना किसी नाते से अगर ढूँढ़ा जाए तो। फिर विश्व भाईचारा रखना तो बनता ही है।
कुकू मंजू हमको ‘रिवर वॉक मार्केट ऑन मिसिसिपि रिवर पर घुमाने लेकर गए। जिसकी चौड़ाई 1 किलोमीटर मानी जाती है। यह समुद्र का तट है। फ़्रेंच क्वार्टर यहाँ का मुख्य आकर्षण है। कुकू हमें न्यू ऑर्लींज़ का फ़ेमस जैज़ म्युज़ि इवेंट और कैसिनो भी लेकर गया। वहाँ इनडोर फ़ुटबाल स्टेडियम ‘सुपर डोम’ भव्य और विशाल था। सच कहूँ तो अमेरिका की बात ही कुछ और है।
न्यू ऑर्लींज़ में फ़्रैंच कल्चर है। वैसे वहाँ ब्लैक अमेरिकन ज़्यादा रहते हैं। यह अनोखा शहर समुद्र-स्तर से नीचे बसा हुआ है। यहाँ का मशहूर खाना रेड बीन्स और चावल का जंबालाया ख़ूब मिर्ची मसाले वाला होता है। (शायद हमारे राजमा चावल की तरह)! और फीकी कुरकुरी लंबी मठिया तलकर उसके ऊपर चीनी का बुरा डालकर कॉफ़ी के साथ खाया जाता है उसे बेनेज़ कहते हैं। हमारे परिवार की अमेरिका में यह पहली पसंद है खाने में।
लो जी एक दिन, मंजु मुझे ब्यूटी पार्लर ले गई। वहाँ मेरे बालों की सैटिंग शोल्डर कट करवा के ले आई। मैंने तो कभी बाल खुले भी नहीं रखे थे। लेकिन सब को पसंद आ गया था यह स्टाइल। ख़ासकर रवि जी को . . .
छोटी बहन उषा का फोन आया कि बेटे बॉबी की शादी आपके प्रोग्राम के साथ रखी है पोर्ट लैंड में, आप लोग आ जाना। दुलहन स्पेनिश है। अब नई तरह के रीति रिवाज़ की शादी भी देखनी थी। दिखाती हूँ आपको अगली बार!
हम इंडिया से ही बूज़ा टिकट्स लेकर आए थे और हमने सबको अपनी आने की डेट्स पहले से दे दी थीं क्योंकि वहाँ लोग काम करते हैं आप ऐसे ही उठकर किसी के घर नहीं जा सकते हैं।
अब एक हफ़्ते के लिए हम ह्यूस्टन (टैक्सास) मेरी सहेली मंजू गुप्ता के पास जा रहे थे। अगली बार हम वहीं मिलते हैं . . .।
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