नया साल, नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य!
आलेख | सामाजिक आलेख प्रियंका सौरभ1 Jan 2024 (अंक: 244, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
नए साल पर अपनी आशाएँ रखना हमारे लिए बहुत अच्छी बात है, हमें यह भी समझने की ज़रूरत है कि आशाओं के साथ निराशाएँ भी आती हैं। जीवन द्वंद्व का खेल है और नया साल भी इसका अपवाद नहीं है। यदि हम ‘बीते वर्ष’ पर ईमानदारी से विचार करें, तो हमें एहसास होगा कि हालाँकि यह आवश्यक नहीं है कि वर्ष ने वह प्रदान किया हो जो हमने उससे चाहा था, लेकिन इसने हमें कुछ बहुमूल्य सीख और अनुभव अवश्य दिए। ये अलग से बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं लग सकते हैं, लेकिन संभवतः ये प्रकृति का हमें उस उपहार के लिए तैयार करने का तरीक़ा है जो उसने हमारे लिए रखा है जिसे वह अपनी समय सीमा में वितरित करेगी। साथ ही, अगर साल ने हमसे कुछ बहुत क़ीमती चीज़ छीन ली है, तो निश्चित रूप से उसने उसकी समान मात्रा में भरपाई भी कर दी है। वर्ष के अंत में, हमें एहसास होता है कि हमारी बैलेंस शीट काफ़ी उचित है। तो, आइए हम आने वाले वर्ष में इस विश्वास के साथ प्रवेश करें कि नए साल का जादू यह जानने में निहित है कि चाहे कुछ भी हो, हर निराशा के लिए मुआवज़ा होगा, हर इच्छा की पूर्ति के लिए एक सीख होगी।
— प्रियंका सौरभ
नया साल हमारे लिए नया समय ही नहीं बल्कि नए समय के साथ नई उम्मीदें, नए सपने, नया लक्ष्य, नए विचार और नए इरादे लेकर आता है। हम सभी को नए साल की शुरूआत अच्छे और नेक कामों के साथ करनी चाहिए। नया साल हमारे मन के भीतर आशा की नई किरण जगाता है। नया साल तो हर साल आता है लेकिन क्या कभी हमनें ये सोचने की कोशिश की है कि हमने इस साल क्या नया और ख़ास किया जिससे ये साल हमारे लिए यादगार साल बन जाए। हम अपनी ज़िन्दगी में बहुत से उतार-चढ़ाव का सामना करते हैं और ये ज़रूरी नहीं है कि हर व्यक्ति के लिए हर साल अच्छा ही जाए या हर साल हर किसी के लिए बुरा ही जाए लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता है कि हम बीते कल को भूल जाएँ। बीता हुआ कल तो हमें आज के लिए और आने वाले कल के लिए सीख देकर जाता है कि कैसे हम अपने कल को आज से बेहतर बना सकते हैं:
“बीत गया ये साल तो, देकर सुख-दुःख मीत।
क्या पता? क्या है बुना? नई भोर ने गीत॥
जो खोया वो सोचकर, होना नहीं उदास।
जब तक साँसें ये चले, रख ख़ुशियों की आस!”
हर साल, साल-दर-साल, हम अपने दिल में एक गीत और क़दमों में वसंत के साथ नए साल में प्रवेश करते हैं। हमें विश्वास है कि जादुई वर्ष अपने साथ हमारी सभी समस्याओं का समाधान लाएगा और हमारी सभी इच्छाएँ पूरी करेगा। चाहे वह सपनों का घर हो, सपनों का प्रस्ताव हो, सपनों की नौकरी हो, सपनों का साथी हो, सपनों का अवसर हो . . . और भी बहुत कुछ बेहतर हो। लेकिन जैसे-जैसे साल शुरू होता है और हम जो कुछ भी सामने आता है उससे निपटते हैं, नए साल की नवीनता, नए संकल्प, नई शुरूआत पहली तिमाही तक लुप्त होने लगती है। वर्ष के मध्य तक हम बहुत अधिक सामान्यता और कई फीकी आशाओं की चपेट में होते हैं, जो उस वादे से बहुत दूर है जिसके साथ हमने शुरूआत की थी। और आख़िरी तिमाही तक हम अपनी वास्तविकता से इतने अभिभूत हो जाते हैं कि हम साल ख़त्म होने का इंतज़ार नहीं कर सकते। हम वर्तमान वर्ष को छोड़ते हुए और एक और ‘नया साल’ मनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं और शुभकामनाएँ बाँटते है”
“बाँट रहे शुभकामना, मंगल हो नववर्ष।
आनंद उत्कर्ष बढ़े, हर चेहरे हो हर्ष॥
गर्वित होकर ज़िन्दगी, लिखे अमर अभिलेख।
सौरभ ऐसी खींचिए, सुंदर जीवन रेख!”
नववर्ष वह समय है जब हमें अचानक लगता है कि, ओह, एक साल बीत गया। हम कुछ पलों के लिए स्तब्ध हो जाते हैं कि समय कितनी जल्दी बीत जाता है, और फिर हम वापस अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं। मज़े की बात यह है कि ऐसा साल में लगभग एक बार तो होता ही है। यदि हम आश्चर्य के इन क्षणों की गहराई में जाएँ, तब हम पाएँगे कि हमारे भीतर कुछ ऐसा है जो सभी घटनाओं को साक्षी भाव से देख रहा है। हमारे भीतर का यह साक्षी भाव अपरिवर्तित रहता है और इसीलिए हम समय के साथ बदलती घटनाओं को देख पाते हैं। जीवन की वे सभी घटनाएँ जो बीत चुकी हैं, एक स्वप्न बन गई हैं। जीवन के इस स्वप्न-जैसे स्वभाव को समझना ही ज्ञान है। यह स्वप्न अभी इस क्षण भी चल रहा है। जब हम यह बात समझते हैं तब हमारे भीतर से एक प्रबल शक्ति का उदय होता है और फिर घटनाएँ व परिस्थितियाँ हमें हिलाती नहीं हैं। हालाँकि, घटनाओं का भी जीवन में अपना महत्त्व है। हमें घटनाओं से सीखना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। नया साल नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य और नए आइडिया की उम्मीद देता है, इसलिए सभी लोग ख़ुशी से बिना किसी मलाल के इसका स्वागत करते हैं:
“आते जाते साल है, करना नहीं मलाल।
सौरभ एक दुआ करे, रहे सभी ख़ुशहाल॥
छोटी सी है ज़िन्दगी, बैर भुलाये मीत।
नई भोर का स्वागतम, प्रेम बढ़ाये प्रीत!”
हालाँकि नए साल पर अपनी आशाएँ रखना हमारे लिए बहुत अच्छी बात है, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि आशाओं के साथ निराशाएँ भी आती हैं। जीवन द्वंद्व का खेल है और नया साल भी इसका अपवाद नहीं है। यदि हम ‘बीते वर्ष’ पर ईमानदारी से विचार करें, तो हमें एहसास होगा कि यह आवश्यक नहीं है कि वर्ष ने वह प्रदान किया हो जो हमने उससे चाहा था, लेकिन इसने हमें कुछ बहुमूल्य सीख और अनुभव अवश्य दिए। ये अलग से बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं लग सकते हैं, लेकिन ये संभवतः प्रकृति का हमें उस उपहार के लिए तैयार करने का तरीक़ा है जो उसने हमारे लिए रखा है जिसे वह अपनी समय सीमा में वितरित करेगी। साथ ही, अगर साल ने हमसे कुछ बहुत क़ीमती चीज़ छीन ली है, तो निश्चित रूप से उसने उसकी समान मात्रा में भरपाई भी कर दी है। वर्ष के अंत में, हमें एहसास होता है कि हमारी बैलेंस शीट काफ़ी उचित है। तो, आइए हम आने वाले वर्ष में इस विश्वास के साथ प्रवेश करें कि नए साल का जादू यह जानने में निहित है कि चाहे कुछ भी हो, हर निराशा के लिए मुआवज़ा होगा, हर इच्छा की पूर्ति के लिए एक सीख होगी, दर्द-दुखों का अंत होगा, अपनेपन की धूप होगी:
“छँटे कुहासा मौन का, निखरे मन का रूप।
सब रिश्तों में खिल उठे, अपनेपन की धूप॥
दर्द-दुखों का अंत हो, विपदाएँ हो दूर।
कोई भी न हो कहीं, रोने को मजबूर!”
नए साल पर अपने लिए लक्ष्य निर्धारित कर लें। छात्र हों या नौकरीपेशा, सभी के लिए कोई न कोई लक्ष्य होना ज़रूरी होता है। भविष्य को बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकते हैं और किस दिशा में प्रयास करना है, इन सब का निर्धारण करने के बाद उसे पूरा करने का संकल्प ले लें। आपका संकल्प हमेशा लक्ष्य को पूरा करने की याद दिलाता रहेगा। सभी ‘नए साल’ को जीवनकाल से जोड़ते हैं और हमारा जीवनकाल आशाओं और निराशाओं, सफलताओं और असफलताओं, ख़ुशियों और दुखों के बारे में है और यह वर्ष भी कम जादुई नहीं होगा। तो इस वर्ष आप अपने संकल्पों को कैसे पूरा कर सकते हैं? इस बारे सोच समझकर आगे बढ़िये, दूसरों से समर्थन माँगें, अपने मित्रों और परिवार से आपका उत्साह बढ़ाने के लिए कहें। उन्हें अपने लक्ष्य बताएँ और आप क्या हासिल करना चाहते हैं। अपने लिए एक इनाम प्रणाली बनाएँ, अल्पकालिक लक्ष्य निर्धारित करें और उन्हें पूरा करने के लिए स्वयं को पुरस्कृत करें। अपने ऊपर दया कीजिये, कोई भी एकदम सही नहीं होता। अपने आप को कोसने की बजाय गहरी साँस लें और नव उत्कर्ष के प्रयास करते रहें:
“खोल दीजिये राज सब, करिये नव उत्कर्ष।
चेतन अवचेतन खिले, सौरभ इस नववर्ष॥
हँसी-ख़ुशी, सुख-शांति हो, ख़ुशियाँ हो जीवंत।
मन की सूखी डाल पर, खिले सौरभ बसंत!”
ऐसा माना जाता है कि साल का पहला दिन अगर उत्साह और ख़ुशी के साथ मनाया जाए, तो पूरा साल इसी उत्साह और ख़ुशियों के साथ बीतेगा। हालाँकि भारतीय परम्परा के अनुसार नया साल एक नई शुरूआत को दर्शाता है और हमेशा आगे बढऩे की सीख देता है। पुराने साल में हमने जो भी किया, सीखा, सफल या असफल हुए उससे सीख लेकर, एक नई उम्मीद के साथ आगे बढऩा चाहिए। ताकि इस वर्ष की एक सुखद पहचान बने:
“खिली-खिली हो ज़िन्दगी, महक उठे अरमान।
आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥
छेड़ रही है प्यार की, मीठी-मीठी तान।
नए साल के पंख पर, ख़ुश्बू भरे उड़ान!”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
सामाजिक आलेख | डॉ. सत्यवान सौरभ(बुद्ध का अभ्यास कहता है चरम तरीक़ों से बचें…
अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
सामाजिक आलेख | डॉ. सुशील कुमार शर्मावैज्ञानिक दृष्टिकोण कल्पनाशीलता एवं अंतर्ज्ञान…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
काम की बात
लघुकथा
सांस्कृतिक आलेख
- जीवन की ख़ुशहाली और अखंड सुहाग का पर्व ‘गणगौर’
- दीयों से मने दीवाली, मिट्टी के दीये जलाएँ
- नीरस होती, होली की मस्ती, रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली
- फीके पड़ते होली के रंग
- भाई-बहन के प्यार, जुड़ाव और एकजुटता का त्यौहार भाई दूज
- रहस्यवादी कवि, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु थे संत रविदास
- समझिये धागों से बँधे ‘रक्षा बंधन’ के मायने
- सौंदर्य और प्रेम का उत्सव है हरियाली तीज
- हनुमान जी—साहस, शौर्य और समर्पण के प्रतीक
स्वास्थ्य
सामाजिक आलेख
- अयोध्या का ‘नया अध्याय’: आस्था का संगीत, इतिहास का दर्पण
- क्या 'द कश्मीर फ़ाइल्स' से बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के चश्मे को उतार पाएँगे?
- क्यों नहीं बदल रही भारत में बेटियों की स्थिति?
- खिलौनों की दुनिया के वो मिट्टी के घर याद आते हैं
- खुलने लगे स्कूल, हो न जाये भूल
- जलते हैं केवल पुतले, रावण बढ़ते जा रहे?
- जातिवाद का मटका कब फूटकर बिखरेगा?
- टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव
- दिवाली का बदला स्वरूप
- दफ़्तरों के इर्द-गिर्द ख़ुशियाँ टटोलते पति-पत्नी
- नया साल, नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य!
- नौ दिन कन्या पूजकर, सब जाते हैं भूल
- पुरस्कारों का बढ़ता बाज़ार
- पृथ्वी की रक्षा एक दिवास्वप्न नहीं बल्कि एक वास्तविकता होनी चाहिए
- पृथ्वी हर आदमी की ज़रूरत को पूरा कर सकती है, लालच को नहीं
- बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने की ज़रूरत
- महिलाओं की श्रम-शक्ति भागीदारी में बाधाएँ
- मातृत्व की कला बच्चों को जीने की कला सिखाना है
- वायु प्रदूषण से लड़खड़ाता स्वास्थ्य
- समय न ठहरा है कभी, रुके न इसके पाँव . . .
- स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
दोहे
चिन्तन
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं