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मुलाक़ात की दो बूँद . . . साहेब! 

 

मुलाक़ात की दो बूँद, साहेब, 
रिश्तों को पोलियो से बचाती है। 
वरना हाल पूछते-पूछते, 
मोहब्बत लकवाग्रस्त हो जाती है। 
 
अब चेहरे मुस्कान लिए रहते हैं, 
पर आँखों में पहचान नहीं रहती, 
हर संदेश “टिक” में बदल गया, 
पर भावनाओं में जान नहीं रहती। 
 
वो वक़्त जब चाय पर बातें होतीं, 
अब वीडियो कॉल में खो गया, 
दिल से दिल मिलने की जगह, 
नेटवर्क से जुड़ना हो गया। 
 
थोड़ा वक़्त निकालिए किसी अपने के लिए, 
थोड़ी परवाह जताइए अपने दिल के लिए, 
हर रिश्ता जवाब नहीं चाहता, 
कभी बस हाज़िरी चाहता है। 
 
सुनिए, जो रिश्ते साँस लेते हैं, 
उन्हें हवा चाहिए, बहाना नहीं, 
मुलाक़ात की दो बूँदें ही काफ़ी हैं, 
रिश्तों को मरझाने से बचाने के लिए। 

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