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जिसका मन पवित्र, बस वही मित्र 

 

मित्र वही जो साथ निभाए, दुःख-सुख में मुस्काए, 
हर ज़ख़्म पर मरहम रखे, आँसू भी मुस्कराए। 
जो दिल से दिल तक बाँध दे, सच्चाई का चित्र, 
पाखंड न जिसके मन में हो— वही सच्चा मित्र। 
 
जो चुप रहकर समझ सके, हर पीड़ा, हर बात, 
न बोले मीठे झूठ कभी, रखे सच्ची सौग़ात। 
निर्मल जैसे गंगाजल, जिसका हो चरित्र, 
जिसका मन पवित्र है, वही सच्चा मित्र। 
 
जो राह दिखाए अँधियारे में, जब दुनिया हो वीरान, 
जो थामे हाथ गिरने पर, करे दिल से सम्मान। 
ना जाति, धर्म, ना स्वार्थ का कोई तंत्र, 
मानवता जिसका धर्म हो— वही सच्चा मित्र। 
 
जो ईर्ष्या-द्वेष से दूर रहे, प्रेम बने उसका मान, 
जो दूसरों की ख़ुशी में देखे अपना ही सम्मान। 
ऐसे लोग ही अमर रहें, जग में छोड़ सुगंधित्र, 
क्योंकि जिसका मन पवित्र— वही सच्चा मित्र। 

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