नज़र झुकाये बेटियाँ
काव्य साहित्य | दोहे प्रियंका सौरभ1 Feb 2021 (अंक: 174, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
कभी बने है छाँव तो, कभी बने हैं धूप!
सौरभ जीती बेटियाँ, जाने कितने रूप!!
जीती है सब बेटियाँ, कुछ ऐसे अनुबंध!
दर्दों में निभते जहाँ, प्यार भरे संबंध!!
रही बढ़ाती मायके, बाबुल का सम्मान!
रखती हरदम बेटियाँ, लाज शर्म का ध्यान!!
दुनिया सारी छोड़कर, दे साजन का साथ!
बनती दुल्हन बेटियाँ, पहने कंगन हाथ!!
छोड़े बच्चों के लिए, अपने सब किरदार!
माँ बनती है बेटियाँ, देती प्यार दुलार!!
माँ, बहना, पत्नी बने, भूली मस्ती मौज!
गिरकर सम्भले बेटियाँ, सौरभ आये रोज़!!
क़दम-क़दम पर चाहिए, हमको इनका प्यार!
माँग रही क्यों बेटियाँ, आज दया उपहार!!
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