अब लौट जाना
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम15 Nov 2019
बस अब लौट जाओ!
मेरी स्मृति,
मेरे अस्तित्व, मेरे भविष्य से
मेरे अतीत से।
बस अब लौट जाओ!
किसी चीज़ का खालीपन होना,
बहुत सी चीज़ों को भर देता है।
कुछ वक़्त का भी निखरना सही होता है,
कुछ सदमों का होना भी ज़रूरी होता है।
क्योंकि इसकी कोख में,
एक नये सच का जन्म होता है।
अस्पताल बन जाने से,
मौतें रुका नहीं करतीं।
और परिवर्तन भी नहीं रुकता
बस इसी सच को मान कर लौट जाओ!
तो बस लौट जाओ उसी तरह,
जैसे जीवन लौट जाता है
मौत की तरफ़।
ठीक उसी तरह,
जैसे यौवन लौट जाता है जरा की तरफ़।
जैसे लौट जाता है बचपन,
असंतुलित यौवन की तरफ़।
ऐसा इसीलिए,
क्योंकि मैं अब रुकना चाहता हूँ
एकाएक ठीक उसी तरह,
जैसे दीवार की घड़ी की सुइयाँ।
बस उसी तरह,
जैसे बहुत दूर लुढ़कती हुई कोई गेंद।
इसीलिए अब लौट जाओ!
जैसे हादसे लौट जाते हैं जीवन से,
जैसे बालों का रंग
सफ़ेदी की ओर लौट जाता है।
बस वैसे ही,
जैसे लौट जाते है आँसू,
ज़मीन की तरफ़।
ऐसा इसीलिए अब,
क्योंकि मैं अब बदलना चाहता हूँ,
अपनी कुछ परिचित आदतों को।
दुविधाओं से भरे जीवन में,
मैंने बहुत कुछ देखा है
मेरा घर भी जल रहा है,
और प्यास मेरे प्राण को निकाले जा रही है
पानी तो है मगर सबसे पहले किसे दूँ?
कहना तो है बहुत कुछ,
लेकिन चुप रहना चाहता हूँ।
मगर चुभन जुबाँ खोल ही देती है।
इसलिए मैं भी चलना चाहता हूँ,
वक़्त की चादर ओढ़े कहीं और..
तो लौट जाओ,
बस अब लौट जाओ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अनसुलझे
- अनुभव
- अन्तहीन
- अपनी-अपनी जगह
- अब लौट जाना
- आँखों में शाम
- आईना साफ़ है
- आज की बात
- उदास आईना
- एक छोटा सा कारवां
- एक तरफ़ा सच
- एक तस्वीर
- एक पुत्र का विलाप
- कल की शाम
- काँच के शब्द
- काश मेरे लिए कोई कृष्ण होता
- कुछ छूट रहा है
- गेहूँ और मैं
- चौबीस घंटे में
- छोटा सा सच
- जलजले
- जीवन इधर भी है
- जीवन बड़ा रचनाकार है
- टूटी हुई डोर
- ठहराव
- तुम्हारा एहसान
- दर्द की टकराहट
- दीवार
- दीवारों में क़ैद दर्द
- धरती के लिए
- धारा न० 302
- पत्नी की मृत्यु के बाद
- पीड़ा रे पीड़ा
- फोबिया
- बेचैन आवाज़
- भूख और जज़्बा
- मनुष्यत्व
- मशाल
- मुक्त
- मुक्ति
- मेरा गुनाह
- मैं अख़बार हूँ!
- मैं डरता हूँ
- मैं दोषी कब था
- मैं दोषी हूँ?
- रास्ते
- रिश्ता
- वह चाँद आने वाला है
- विवशता
- शब्द और राजनीति
- शब्दों का आईना
- संवेदना
- सच चबाकर कहता हूँ
- सच बनाम वह आदमी
- सच भी कभी झूठ था
- सफ़र (राहुलदेव गौतम)
- हादसे अभी ज़िन्दा हैं
- ख़ामोश हसरतें
- ख़्यालों का समन्दर
- ज़ंजीर से बाहर
- ज़िन्दा रहूँगा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}