अभिवादन
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
नव अंकुर खिल रहे हृदय के भावो में।
मन मन्दिर के शंख बजे हैं यादों में।
नवल वर्ष का आओ करें आज अभिवादन।
हर्षोल्लास भरे हर नगर और गाँवों में।
श्वेत वर्णी सजी धरा औ गगन सुहावन।
कोमल हिम तुषार देखो आता राहों में।
शंकर की प्रतिमा दिखती सजती पवर्त पर।
दिखता है राकेश सुघड़ प्रिय के भावों में।
अब गंगा की धारा निमर्ल सतत बहेगी।
अब नंदी गण हैं खड़े आज पहरेदारों में।
नवल वर्ष में होगी आस सभी की पूरी।
अब न निराशा होगी किंचित अनुरागों में।
आज कैनडा की धरती हिम मंडित सुन्दर।
बालक स्नो मैन रचें घर - गलियारों में।
कोई राह देखता है सैन्टा क्लाउज़ की।
नार्थ पोल से आयेगा चुपके पाँवों में।
राह जोहती है प्रकाश का जैसे रजनी।
चाह खोजती है वैसे ही प्रिय राहों में।
नवल उदय होगा ही रवि की किरणों से।
नूतन हर्ष भरेगा सबके उद्गारों में।
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