अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

क्यों

भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें? 
कुछ भी लेना नहीं तुम्हें जब 
करते क्यों बाज़ार की बातें? 
1.
आते नहीं सामने क्यों 
जो चेहरे हैँ असली? 
मुखौटे में जीवन जीने की 
रीत कहाँ से निकली? 
परदे के पीछे रहना जब 
करते क्यों संसार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें? 
2.
अपने पौरुष बल पर क्या 
तुमको नहीं भरोसा? 
पराधीनता के आग़ोश में 
क्यों तुम रहे हमेशा?
सिंहनी के वंशज होकर भी 
करते क्यों लाचार सी बातें? 
भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें? 
3.
डिग्रियों की बैसाखी पर 
कब तक रोज़ी ढूँढ़ी जायेगी? 
दिशाहीन शृंखला में कब तक 
कड़िया जोड़ी जायेंगी? 
देखी नहीं नींव जब तुमने 
करते क्यों आधार की बातें?
भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें? 
4.
परिचय मिला नहीं जीवन में 
जिनको अभी किनारों का, 
हाल भला कैसे कहते वो 
बीच नदी की धारों का? 
देखी नहीं नाव जब तुमने 
करते क्यों पतवार की बातें? 
भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें? 
5.
शकुनी के शतरंजी पासों ने 
चली हैं जब भी टेढ़ी चालें, 
पाँच-पाँच पतियों की पत्नी 
फिर छठवें के हुई हवाले, 
मर्यादा की चौपड़ है तो 
करते क्यों व्याभिचार की बातें? 
भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें? 
6.
इंद्र के मायावी रूपों से 
कब तक अहिल्या छली जायेगी? 
धर्म रक्षकों की छाती पर 
कब तक यूँ ही मूँग दली जायेगी? 
शील भंग जब कर्म तुम्हारा 
करते क्यों संस्कार की बातें? 
भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें? 
7.
शर-शैय्या पर भीष्म पितामह की 
साँस कहाँ टूटने पायी? 
शस्त्र और शास्त्र साथ मिले जब 
अधर्म ने है मुँह की खाई। 
करना है "अमरेश" तुम्हें कुछ 
करते क्यों न सुधार की बातें? 
भूल गए हो कैसे तुम 
अपने अधिकार की बातें?

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

कविता

लघुकथा

कहानी

कविता-मुक्तक

हास्य-व्यंग्य कविता

गीत-नवगीत

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं