उदास आईना
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम15 Apr 2020
वो कोहिनूर था
मेरे जज़्बातों के समंदर का
कितनी घुटन सह कर पाया था उसे।
आँसू गर होते तो
हँस कर पी जाते जनाब
ये सच का लहू है
घूँट-घूँट कर पीते हैं।
मेरा आईना भी कितना सूना है
आजकल
मेरा सूना-सूना अक्स देखकर।
मुकम्मल सी होती अगर
मेरे ज़मानत की अर्ज़ी
तो आज हम भी
शराफ़त में सज़ा न पाते।
शिकायत थी,
बात जी भर नहीं होती उनसे
और जब हुआ तो
बिछड़ना रिश्ते का अंजाम हो गया।
कभी फ़ुरसत में न थी हमारी साँसें
उनका नाम लेते-लेते
आज फ़ुरसत में तो है
मगर ज़ुबां पर उनके नाम के
छाले से पड़ गये हैं।
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