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अभिनन्दन

गए वर्ष की कगार पर खड़े राह तकते।
गुंजयमान हैं दसों दिशाएँ नव अभिनन्दन को।
मानव संस्कृति के आयाम अब रूप बदलेंगे।
सहस्त्रदल कमल राह में बिछेंगे शीशवन्दन को।।

वर्त्तमान प्रतिबिम्बित है आनेवाले कल के चेहरे में।
आतंकित न हो कलिकाल के भयावह चेहरे से।
अकथनीय अनुभवों को संजो ले शब्दों में न ढाल।
कहीं अपार्थिव क्षणों में शब्दों को पंख न लग जाए।

कल आकाश की नीलाभ अलिप्तता को छोड़कर ।
अभ्युत्थान होगा नव सूर्य की किरणों का धरा पर।
उद्वेलित समय की कालिमा को हटा प्रकाश छाएगा।
नूतन वर्ष हृदय में हर्षोल्लास के फूल खिलाएगा।

प्रत्येक युग पुरूष का ललाट होगा देदीप्यमान ।
शुभ लाभ कल्याण के पुण्य मंत्रों का होगा उच्चारण ।
निर्मल निर्झरणी बहा लाएगी पुनः पावन इतिहास।
शुभ कामनाओं से परिपूर्ण होगा मानव प्रयास...।।
 

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