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विधायकजी की सिफ़ारिश 

गाँव के ही दबंग टपल्लू से बचनराम का खेत की मेड़ को लेकर विवाद क्या हुआ, बेचारे बचनराम को हवालात की हवा खानी पड़ गई। वैसे थानेदार साहब ने बचनराम पर दया दिखाते हुए, दो हज़ार की दक्षिणा माँगी थी और मामला गाँव में ही सुलटा देने को कहा पर बचनराम पर तो नोन (नमक) तक ख़रीदने के लिए दस रुपये जेब में न थे, इसीलिए वो दो हजार की रक़म कहाँ से देता। और इसीका नतीजा अब वो हवालात में बंद होकर भुगत रहा था।

बचनराम थाने की कोठरी (हवालात) में बैठा-बैठा सोच रहा था, काश वह टपल्लू से कुछ न कहता, फिर चाहे उसका आधा खेत ही वो टपल्लू क्यों न जोत लेता...। तभी उसे कल वाली बात याद आ गई। गाँव में विधायक जी चुनाव प्रचार के लिए आये थे, उससे भी बात की थी। विधायक जी ने और एक कार्ड भी दिया था, यह कहते हुए - जब भी कोर्ट-कचहरी, थाने-वाने का लफड़ा बने, बेहिचक रात के बारह बजे मुझे फोन करना, उसी वक़्त मदद को हाज़िर हो जाऊँगा पर बस कृपा दृष्टि बनाये रखना...।

बचनराम ने अपने फटे कुर्ते की जेब टटोली... कार्ड मिल गया। कार्ड दिखाते हुए बचनराम थानेदार साहब से गिड़गिड़ाया। थानेदार जी ने कार्ड बचनराम के हाथ से छीन लिया और एकांत में चले गये।

"हैलो सर, नमस्ते सर... सर ! एक मुर्गा है बचनराम नाम है उसका। आपका कार्ड दिखा रहा है। क्या करूँ उसका...?"

"छोड़ दो... चार-छ: डंडे जमा के... वोट बैंक है।"

कुछ देर बाद बचनराम अपनी पीठ सहलाते हुए बाहर आ गए...  पर वे ख़ुश थे कि विधायक जी की सिफ़ारिश ने उन्हें हवालात से आज़ाद करा दिया। पीठ लाल तो टपल्लू से झगड़ा करने के कारण हुई है।

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