एहसास
कथा साहित्य | कहानी आशीष कुमार1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
मल्होत्रा परिवार की लाड़ली पद्मिनी उर्फ़ पम्मी ख़ुशमिज़ाज लड़की थी। सुंदरता ऐसी की चाँद भी शरमा जाए। गोल-मटोल मासूम सा चेहरा। आँखों से जैसे नूर टपकता रहता हो। पद्मिनी को अपने परिवार से गहरा लगाव था। वह अपने मम्मी-पापा को दिलो-जान से चाहती थी। उनसे जुदा होने के बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था और ना ही कभी सोच सकती थी।
लेकिन जैसा हर लड़की के साथ होता है, उसके जीवन में भी वह पल आ गया जब घर में शादी के चर्चे चलने लगे। एक शाम को उसकी मम्मी उसके कमरे में पहुँची और उसे पास बिठाकर प्यार से सर सहलाते हुए बोलने लगी, “मेरी लाड़ली पम्मी! आज तेरे पापा कह रहे थे कि एक बहुत अच्छा लड़का है। तेरी ही तरह शिमला में बैंक में जॉब करता है। लड़के की तस्वीर आई है, लो देख लो।”
यह सुनते ही पम्मी अवाक् रह गई। उसके दिल में माँ-पापा के लिए चिंता के बादल उमड़ने लगे। पम्मी बोली, “नहीं माँ, मुझे शादी नहीं करनी। मुझे आप लोग को छोड़कर कहीं नहीं जाना।” अकेली संतान थी वह। सोचने लगी मैं चली जाऊँगी तो माँ-पापा का क्या होगा?
इधर उसके माँ-पापा सोच रहे थे कि बेटी तो पराया धन है। उसे डोली में बिठाकर ही उन्हें शान्ति मिल सकती है। एक दूसरे के लिए एहसासों ने सब को बेचैन कर रखा था। कुछ देर बाद फिर माँ बोली, “एक बार देख तो लो पम्मी, शिमला में ये बैंक मैनेजर है। एक साथ हँसी-खुशी रह सकती हो।”
पम्मी ने बिल्कुल शान्ति के साथ प्यार से जवाब दिया, “माँ! ऐसी शादी का क्या जो मुझे आप लोगों से दूर कर दे और जो मिले वह जाने कैसा होगा?” आख़िरकार पम्मी की ज़िद के आगे सभी को झुकना पड़ा।
उधर आदित्य के परिवार वाले भी इस बात को लेकर परेशान थे कि फोटो तो भेज दी लेकिन आदित्य मानेगा कि नहीं? दरअसल वह भी पम्मी की तरह ही सोच रखता था कि शादी हो जाएगी तो मैं कहीं माँ-पापा से दूर तो नहीं हो जाऊँगा!
उसी रात आदित्य की माँ सरला भी उसकी शादी का प्रस्ताव लेकर उसके पास गई और बोली, “बेटा तेरी उम्र हो गई है। अब तो शादी कर ले। आख़िर एक न एक दिन तो सबको शादी करनी ही पड़ती है। देख ले, अच्छी भली लड़की है और सबसे अच्छी बात तो यह है कि शिमला में ही बैंक में जॉब करती है। तेरे लिए बहुत परफ़ेक्ट है बेटा।”
आदित्य शांत मिज़ाज का हँसमुख लड़का था। बहुत कम बोलता था। बस मुस्कुरा कर बात को टाल दिया और फोटो लेकर टेबल पर रख दी, देखी तक नहीं। फिर छत पर जाकर टहलने लगा।
दो दिन की छुट्टी के बाद पद्मिनी शिमला जाने के लिए ट्रेन पकड़ने स्टेशन पहुँच गई। ट्रेन आते ही अपना स्लीपर क्लास खोजते हुए जब अपनी सीट पर पहुँची तो देखी कि वहाँ एक सुंदर सजीला नौजवान किताबों में डूबा हुआ है। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान है। स्वभाव से मृदुल लग रहा था। देख कर उसे आश्चर्य हुआ कि आज के ज़माने में किताबों में डूबा हुआ यह लड़का कितना अलग है सब से।
उसकी सीट सामने थी। बैग ऊपर रख कर वह अपनी सीट पर बैठ गई। पद्मिनी को उस लड़के की सादगी बहुत पसंद आई थी। वह उस लड़के से बात करने को आतुर हो उठी, लेकिन झिझक के कारण बोल नहीं सकी। कुछ देर बाद एक बुज़ुर्ग आ गये। उन्होंने उस लड़के से ऊपर की सीट पर जाने की गुज़ारिश की, क्योंकि उनकी सीट ऊपर थी और वह ऊपर नहीं जा सकते थे। लड़के ने मुस्कुराते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए सीट ही नहीं छोड़ी बल्कि उनका बैग भी अच्छे से रखवा दिया। ऊपर जाकर फिर लेट गया। संयोग से पद्मिनी की सीट भी ऊपर थी। उत्सुकतावश ऊपर जाकर लेट गई। उससे जब रहा नहीं गया तो उसने बात शुरू करने के लिए उसे हेलो कहा और उसकी किताब माँगी। लड़के ने भी हेलो बोला और उसे अपनी किताब दे दी। उसने नोटिस किया कि उस लड़के ने उसकी तरफ़ ऐसी-वैसी नज़र से नहीं देखा।
कुछ देर बाद बोली, “काफ़ी इंटरेस्टिंग किताब है।” लड़का सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया। उसने फिर पूछा, “कहाँ जा रहे हैं?”
लड़के ने जवाब दिया, “छुट्टी में घर आया था। शिमला ड्यूटी ज्वाइन करने जा रहा हूँ।”
वह भी बोल पड़ी, “मैं भी छुट्टी में घर आई थी और वहीं ड्यूटी ज्वाइन करने जा रही हूँ।”
लड़का फिर मुस्कुरा दिया। यह लड़का और कोई नहीं, आदित्य ही था। उसके मन में भी अब धीरे-धीरे पद्मिनी के लिए उथल-पुथल मचने लगी थी। उसे भी पद्मिनी का स्वभाव बहुत पसंद आया था। रास्ते भर वे एक-दूसरे का ख़्याल रखते रहे। एक-दूसरे के बारे में ख़ूब बातें हुई। न जाने यह कैसा एहसास था जो उन दोनों को एक दूसरे के साथ जोड़ चुका था। पद्मिनी को वो इतना भा गया था कि उसे यहाँ तक लगने लगा था कि अगर उससे शादी हो गई तो उसके नसीब खुल जाएँगे। वह चाहे तो अपने माँ-पापा को साथ में रहने के लिए उसे मना सकती है। इस तरह उसे दोनों हाथों में लड्डू नज़र आने लगे। आदित्य भी सोच रहा था कि काश ऐसी लड़की मिलती तो मेरे पूरे परिवार से घुल-मिल जाती और हम सब के रिश्तों में कभी दूरी नहीं आती।
गाड़ी की रफ़्तार धीमी होने लगी थी। शिमला स्टेशन आने वाला था। दोनों उतरने के लिए तैयार हो गये। नीचे उतरने के बाद एक दूसरे को मुस्कुरा कर जी भर के देखा। फिर एक दूसरे को बाय बोल कर मुड़ गए। लेकिन उनके क़दम जैसे कोई खींच रहा था। चंद क़दम चल-चल कर रुक जाते और एक दूसरे को मुड़-मुड़ कर देखते। मन में एक दूसरे के लिए एहसास लिए हुए वह बोझिल मन से वहाँ से निकल गये।
दिन भर उनका मन काम में नहीं लगा। रात में पद्मिनी ने आदित्य को कॉल किया और अपने मन की बात बताई। आदित्य भी उतावला हो रहा था। उसने भी उससे कहा कि वह भी उसे बहुत पसंद आ गई है। उसके मन में भी उसके लिए एहसास जग चुके हैं। उसने कहा कि मैं अपनी फ़ैमिली से तुम्हें मिलाना चाहता हूँ। पद्मिनी भी राज़ी हो गई और बोली कि मैं भी चाहती हूँ कि मेरी फ़ैमिली से भी तुम मिल लो।
अगली छुट्टी में दोनों घर लौटने के बाद एक प्लान के तहत अपनी-अपनी फ़ैमिली को पार्क में लेकर गए और अचानक से दोनों परिवारों को मिला दिया। लेकिन यह क्या, दोनों परिवार उन दोनों को देखकर ठहाके मार कर हँसने लगे। उन दोनों को कुछ समझ नहीं आया। दोनों ने एक साथ पूछा कि क्या हुआ आप लोगों को? इतना हँस क्यों रहे हैं? आदित्य के पापा ने हँसते हुए कहा, “जो काम तुम दोनों के परिवार वाले मिलकर नहीं कर सके, वह काम तुम लोगों के दिल में जगे एहसासों ने कर दिया।”
सच में आज यह रिश्ता जुड़ रहा था तो सिर्फ़ और सिर्फ़ एहसासों की वजह से।
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