तुम ही तो हो
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार15 Oct 2023 (अंक: 239, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
ना चाहो मुझे कोई बात नहीं
मगर मेरे दिल में जानेमन तुम ही तो हो
दिल पर हाथ रख महसूस कर लेता हूँ तुम्हें
मेरे दिल की धड़कन तुम ही तो हो
खुली आँखों को मयस्सर नहीं छवि तुम्हारी
बंद आँखों में रूबरू तुम ही तो हो
आते हैं मीठे सपने मुझे हर रात को
उनका मीठापन तुम ही तो हो
सूनी सूनी सी है ज़िन्दगी मेरी
इस ज़िन्दगी का सूनापन तुम ही तो हो
एक तुम ही भर सकते हो मेरा सूनापन
मेरा एकमात्र अपनापन तुम ही तो हो
नहीं है मुझे कोई और ज़रूरत
मेरे सारे संसाधन तुम ही तो हो
लगी है मुझे बस तुम्हारी आदत
वजह आदतन तुम ही तो हो
जुड़ा हुआ हूँ जिस बंधन से
वह प्रीति बंधन तुम ही तो हो
सुमिरता रहता हूँ बस तुझे ही
वह स्मृति वंदन तुम ही तो हो
दुनिया चाहती आशीष को पाना
मैं जिस पर अर्पण तुम ही तो हो
बिठाया है तुमको मन मंदिर में
मेरे मन का दर्पण तुम ही तो हो
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