पत्थर के भगवान
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 Jul 2022 (अंक: 208, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
हथौड़े-छेनी की संगत से
गढ़ रहा था भाग्य और सम्मान
तराश रहा था मूर्तिकार
पत्थर से पत्थर के भगवान
पहले राह का रोड़ा था
ठोकर थी उसकी पहचान
सौभाग्य बन गया मूर्तिकार से मिलना
बन बैठा भगवान
मगर काफ़ी दर्द सहा उसने
हर चीख भर रही थी उसमें जान
परमात्मा का प्रवेश हो रहा था उसमें
निखर रहे थे पत्थर के भगवान
रूप दिया रंग दिया
लगा दी पूरी जान
पत्थर समझ कर लाया था
बना दिया उसे भगवान
रचने वाले को रच रहा था
धरती का ही एक इंसान
तरह-तरह के सजे पड़े थे
पत्थर के भगवान
ख़रीदार खड़े थे सामने
मूल्य पर मचा घमासान
चंद पैसों में दे रहा था
सब कुछ देने वाले पत्थर के भगवान
ख़रीद रहा था कौड़ियों सा
पत्थर दिल इंसान
बिक रहे थे कौड़ियों के भाव
पत्थर के भगवान
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- 26 जनवरी अमर रहे
- अभी बादल ले रहा उबासी
- अशक्तता पर विजय
- अहा बनारस
- आईं देखीं रउवा हमार पटना
- आश्वासनों के दौर में
- ओ नभ के मँडराते बादल
- कन्या पूजन
- कस्तूरी मृग
- काश मैं भी एक गुलाब होता
- काश मैं भी एक टेडी बीयर होता
- कितना मुश्किल है पिता होना
- कुल्हाड़ी
- चली चली रे रेलगाड़ी
- जन्माष्टमी पर्व है आया
- ज्वालामुखी
- तुम ही तो हो
- तेरा हर लाल सरदार बने
- तेरे रूप अनेक हैं मैया
- धरती उगल रही है आग
- नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
- नव वर्ष का अभिनंदन
- नव वर्ष की शुभ घड़ी आई
- पतंग की उड़ान
- पत्थर के भगवान
- पितृ पक्ष में तर्पण
- बाल हनुमान
- मन की व्यथा
- माँ-पापा की लाड़ली बेटी हूँ
- मामला गरम है
- मुक्ति संघर्ष
- मेरा कौन है मैं किसे अपना कहूँ
- मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
- मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
- मैं भी सांता क्लॉज़
- मैं सुहागन तेरे कारण
- रावण दहन
- समता की अधिकारी 'नारी'
- स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
- हर पड़ाव बदला रंगशाला में
- हिंदी सचमुच महान है
- हे वीणापाणि माँ सरस्वती
- ग़रीब आदमी हूँ
- ज़िन्दगी एक पतंग
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कहानी
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
कविता - हाइकु
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं