टूटता तारा
कथा साहित्य | कहानी आशीष कुमार15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
रामदीन अपने चार बच्चों और अपनी बीवी के साथ बड़ी हँसी, “ख़ुशी रहता था। रोहित, कमल, संजय और जूली उसकी जान थे। बच्चों को जो भी ज़रूरत होती, वह उसे ख़ुशी से पूरा करता। सब की फ़रमाइश सर आँखों पर रहती।
एक बार रात में वह अपने बच्चों के साथ छत पर टहल रहा था। जूली को तभी आसमान में एक चमकती हुई पतली सी लकीर की तरह कुछ रोशनी दिखाई दी जो तेज़ी से भाग रही थी। जूली चहकते हुए बोली, “भैया! वह देखो क्या है? पापा! बताओ ना क्या है वह?”
रामदीन ने कहा, “वह एक टूटता तारा है बेटा।”
कमल बोल पड़ा, “यह टूटता तारा क्या होता है पापा?”
रोहित ने भी कहा, “सारे तारे क्यों नहीं टूटते? बाक़ी तो बस टिमटिमाते रहते हैं।”
रामदीन ने कहा, “बेटा यह तारा बिल्कुल ख़ास है। जो भी इसे देखता है तो वह इससे अपनी मुरादें माँगता है और यह उनकी मुरादें पूरी कर देता है।”
तभी जूली बोल पड़ी, “जैसे आप हमारी मुरादें पूरी करते हैं।”
रामदीन बेटी की बात पर हँसने लगे।
कमल ने फिर कहा, “पापा क्या आप भी हमारे लिए टूटते तारे हैं?” तो उनकी माँ ने उन्हें चुप कराते हुए कहा कि बेटा ऐसा नहीं बोलते।
समय बीतता गया। बच्चे अब जवान हो गए थे। कमाने भी लगे थे। समय बीतने और उम्र बढ़ने के साथ उनकी माँगे भी बढ़ गईं थीं। सभी रामदीन की जीवन भर की गाढ़ी कमाई और मकान पर बँटवारे के लिए नज़र गड़ाए हुए थे। आए दिन आपस में झगड़ा होता रहता। इसी बीच चिंता के मारे रामदीन की पत्नी चल बसी। सभी रिश्तेदार घर पर पहुँचे हुए थे। सब जगह मातम पसरा हुआ था। लेकिन वे सब इन सबसे बेफ़िक्र थे।
माँ को गए अभी कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन बँटवारे की बात को लेकर संजय और कमल में तू-तू, मैं-मैं हो गई।
सभी रामदीन के पास पहुँचे और बोले, “आज फ़ैसला हो ही जाना चाहिए। जिसके हिस्से में जो भी आए, दे दीजिए। आख़री बार आपसे अपना अपना हक़ माँग रहे हैं।
रामदीन आँखों में आँसू लिए निःशब्द पड़ा हुआ था। जैसे बोलने की शक्ति ही क्षीण पड़ गई हो। उसकी गृहस्थी की गाड़ी का एक पहिया तो पहले ही निकल चुका था और अब पूरी की पूरी की गृहस्थी टूट कर बिखरने वाली थी। काँपते हुए उसने क़लम उठाया और वसीयत के काग़ज़ात पर दस्तखत कर दिए। वह टूट रहा था, लेकिन जाते-जाते अपना कर्तव्य निभा कर जा रहा था। उसने अपने बच्चों की आख़िरी मुराद पूरी जो कर दी थी। बरसों पहले की धुँधली यादें उसके ज़ेहन में ताज़ा हो गई। आज जीवन के की अंतिम घड़ी में वह एक सत्य से परिचित हो रहा था। सच में वह एक टूटता तारा ही तो था जो मुराद पूरी करते करते बुझ गया।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- 26 जनवरी अमर रहे
- अभी बादल ले रहा उबासी
- अशक्तता पर विजय
- अहा बनारस
- आईं देखीं रउवा हमार पटना
- आश्वासनों के दौर में
- ओ नभ के मँडराते बादल
- कन्या पूजन
- कस्तूरी मृग
- काश मैं भी एक गुलाब होता
- काश मैं भी एक टेडी बीयर होता
- कितना मुश्किल है पिता होना
- कुल्हाड़ी
- चली चली रे रेलगाड़ी
- जन्माष्टमी पर्व है आया
- ज्वालामुखी
- तुम ही तो हो
- तेरा हर लाल सरदार बने
- तेरे रूप अनेक हैं मैया
- धरती उगल रही है आग
- नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
- नव वर्ष का अभिनंदन
- नव वर्ष की शुभ घड़ी आई
- पतंग की उड़ान
- पत्थर के भगवान
- पितृ पक्ष में तर्पण
- बाल हनुमान
- मन की व्यथा
- माँ-पापा की लाड़ली बेटी हूँ
- मामला गरम है
- मुक्ति संघर्ष
- मेरा कौन है मैं किसे अपना कहूँ
- मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
- मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
- मैं भी सांता क्लॉज़
- मैं सुहागन तेरे कारण
- रावण दहन
- समता की अधिकारी 'नारी'
- स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
- हर पड़ाव बदला रंगशाला में
- हिंदी सचमुच महान है
- हे वीणापाणि माँ सरस्वती
- ग़रीब आदमी हूँ
- ज़िन्दगी एक पतंग
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कहानी
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
कविता - हाइकु
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं