माँ-पापा की लाड़ली बेटी हूँ
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 May 2023 (अंक: 228, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
ममता के आँचल में पली-बढ़ी
हरदम माँ की गोद में लेटी हूँ
ज़मीं पर नहीं रखने पाँव मेरे
मैं पापा के कंधों पर बैठी हूँ
मुझमें है सबकी जान बसती
घर में मैं सबकी चहेती हूँ
किसी पहचान की मोहताज नहीं
माँ-पापा की लाड़ली बेटी हूँ
कोई बुलाता लाडो कह कर
कोई कहे पीहू सी लगती हूँ
मंत्रमुग्ध हो जाते हैं घर वाले
जब तोतली ज़ुबाँ में चहकती हूँ
गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलते
कभी माँ की साड़ी लपेटी हूँ
पापा सा कभी करती तो लगता
सारी दुनिया मुट्ठी में समेटी हूँ
पहन लेती चश्मा दादी का
सब पर हुकुम चलाती हूँ
छड़ी पकड़कर ऐसे चलती
जैसे ख़ुद दादी बन जाती हूँ
घर भर में हूँ बड़ी सयानी
पर उम्र में अभी मैं छोटी हूँ
पूरा घर सर पर उठा लेती
जब भी कभी मैं रोती हूँ
दादी-नानी की कहानी सुनकर
ख़ुद को परी समझ लेती हूँ
मैं अलबेली मैं चुलबुली
माँ-पापा की लाड़ली बेटी हूँ
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- 26 जनवरी अमर रहे
- अभी बादल ले रहा उबासी
- अशक्तता पर विजय
- अहा बनारस
- आईं देखीं रउवा हमार पटना
- आश्वासनों के दौर में
- ओ नभ के मँडराते बादल
- कन्या पूजन
- कस्तूरी मृग
- काश मैं भी एक गुलाब होता
- काश मैं भी एक टेडी बीयर होता
- कितना मुश्किल है पिता होना
- कुल्हाड़ी
- चली चली रे रेलगाड़ी
- जन्माष्टमी पर्व है आया
- ज्वालामुखी
- तुम ही तो हो
- तेरा हर लाल सरदार बने
- तेरे रूप अनेक हैं मैया
- धरती उगल रही है आग
- नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई
- नव वर्ष का अभिनंदन
- नव वर्ष की शुभ घड़ी आई
- पतंग की उड़ान
- पत्थर के भगवान
- पितृ पक्ष में तर्पण
- बाल हनुमान
- मन की व्यथा
- माँ-पापा की लाड़ली बेटी हूँ
- मामला गरम है
- मुक्ति संघर्ष
- मेरा कौन है मैं किसे अपना कहूँ
- मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
- मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
- मैं भी सांता क्लॉज़
- मैं सुहागन तेरे कारण
- रावण दहन
- समता की अधिकारी 'नारी'
- स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!
- हर पड़ाव बदला रंगशाला में
- हिंदी सचमुच महान है
- हे वीणापाणि माँ सरस्वती
- ग़रीब आदमी हूँ
- ज़िन्दगी एक पतंग
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कहानी
हास्य-व्यंग्य कविता
गीत-नवगीत
कविता - हाइकु
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं