मैं भी सांता क्लॉज़
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
क्रिसमस डे को सुबह सवेरे
मैं भी निकला बन ठन कर
सांता क्लॉज़ के कपड़े पहन
चलने लगा झूम झूम कर
पीठ पर लिया बड़ा सा थैला
खिलौने रख लिए भर भर कर
लंबी दाढ़ी पर हाथ फेरते
मैं चला बच्चों की डगर
पहुँचा क्रिसमस पार्टी में जब
बच्चों की तैयारी थी जमकर
मुझे देखते दौड़ पड़े सब
सांता सांता बोल बोल कर
मेहनत का हर काम किया पर
उपेक्षा मिलती थी मुझको दर दर
बच्चों ने सर आँखों पर बिठाया
खिले थे चेहरे उनके मुझे पाकर
मिले थे पैसे भूखे पेट भरने भर
ख़ुशियाँ मिली थी दिल खोलकर
ऐसी ही ख़ुशियाँ घर बाँटने को
निकला वहाँ से झोली समेटकर
शाम को जब मैं घर लौटा
उछल पड़े बच्चे मुझे देख कर
दौड़ कर मुझे गले लगाया
मेरे पापा मेरे सांता कह कर
ख़ुशी मेरी मायूसी में तब बदली
थैला था ख़ाली पहुँचते-पहुँचते घर
पोंछ कर मेरे आँसू बच्चों ने कहा
पापा आप हमारे सांता सालों भर
सभी प्यारे सांता की यही कहानी
ख़ुशियाँ देते अपने ग़म भूल कर
बच्चों की एक हँसी की ख़ातिर
नहीं देखते अपनी जेबें टटोलकर
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