मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
बाबा बसे हो काशी नगरिया
काशी नगरिया हो काशी नगरिया
कभी तो आओ हमरी दुअरिया
हमरी दुअरिया हो हमरी दुअरिया
मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
इसमें बसता तू डमरू वाला है
मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
इसमें बसता तू डमरू वाला है
बीती जाए ना हमरी उमरिया
हमरी उमरिया हो हमरी उमरिया
नंदी को मोड़ो हमरी डगरिया
हमरी डगरिया हो हमरी डगरिया
तू तो भक्तों की सुनने वाला है
कहाँ बैठा तू डमरू वाला है
तू तो भक्तों की सुनने वाला है
कहाँ बैठा तू डमरू वाला है
तेरे चरणों में है हमरी पगड़िया
हमरी पगड़िया हो हमरी पगड़िया
थोड़ी तो कर लो हमरी कदरिया
हमरी कदरिया हो हमरी कदरिया
तुझसे क्या छुपने वाला है
मेरा सब कुछ तू डमरू वाला है
तुझसे क्या छुपने वाला है
मेरा सब कुछ तू डमरू वाला है
राम जी देखे ऊपर अटरिया
ऊपर अटरिया हो ऊपर अटरिया
पहुँचे थे तुम तो बनकर मदड़िया
बनकर मदड़िया हो बनकर मदड़िया
हमसे कब मिलने वाला है
हो कब डमरु बजाने वाला है
हमसे कब मिलने वाला है
हो कब डमरु बजाने वाला है
बाबा बसे हो काशी नगरिया
काशी नगरिया हो काशी नगरिया
कभी तो आओ हमरी दुअरिया
हमरी दुअरिया हो हमरी दुअरिया
मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
इसमें बसता तू डमरू वाला है
मेरा मन मंदिर भी शिवाला है
इसमें बसता तू डमरू वाला है
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