पतंग की उड़ान
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
हँसती खिलखिलाती पतंग
उड़ती गई आसमान में
उड़ना ही तो था उसे
बुलंदियों पर पहुँचना था
हवा से अठखेलियाँ करती
उड़ती जा रही थी
जोश जुनून से भरी हुई
बिल्कुल मस्त मौला
सूरज से आँख मिलानी थी उसे
तारों को चिढ़ाना था उसे
लेकिन सरजमीं से जुड़ी रहकर
नाता भी निभाना था उसे
मगर किसी की बुरी नज़र थी
रोकना चाहती थी उसका रास्ता
साथ उड़ रही दूसरी पतंग
काट रही थी बेरहमी से उसे
आँखों में आँसू आ गए
सीना छलनी हो गया
आख़िर क्यों हुआ ऐसा
जवाब जानना था उसे
अकस्मात् नीचे नज़र पड़ी
ठहाकों की आवाज़ पर
लड़ा रहे थे मज़े के लिए
उसी के सरपरस्त उसे
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