कितना मुश्किल है पिता होना
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 Jul 2022 (अंक: 208, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
बदलते सामाजिक परिवेश में
बढ़ती ज़िम्मेदारियों तले
बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए
झुकती कमर की चिंता छोड़
जी तोड़ मेहनत पर डटा होना
सुविधा संपन्न नव पीढ़ी के
नवांकुरों को पता ही क्या
कितना मुश्किल है पिता होना
अपने सपनों को तोड़ कर
पाई पाई जोड़ कर
उनके सपनों को ज़िन्दा रखने के लिए
सर की पगड़ी भी गिरवी रख कर
कर्ज़ तले भी ज़िन्दा होना
बिना प्रश्नचिह्न लगे अपनी इच्छाओं की
पूर्ति कराने वाले क्या जाने
कितना मुश्किल है पिता होना
सशक्त मार्गदर्शक बन कर
दिशाहीन पीढ़ी को सही राह दिखाना
उनमें सशक्त व्यक्तित्व निर्मित करने के लिए
उनके रोष द्वेष मनोवेग को सँभाल कर
उनका साथी बनकर साथ बैठा होना
भावनाओं के समंदर में गोते लगाने वाले
प्यारे बच्चों समझना होगा तुम्हें
कितना मुश्किल है पिता होना
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