मन की व्यथा
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 Feb 2023 (अंक: 222, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
इस निर्मोही दुनिया में
कूट-कूट कर भरा कपट
कहाँ फ़रियाद लेकर जाऊँ मैं
किसके पास लिखाऊँ रपट
जिसे भी देखो इस जहाँ में
भगा देता है मुझे डपट
शान्ति नहीं अब इस जीवन में
कहाँ बुझाऊँ मन की लपट
जो भी था मेरे पास में
सबने लिया मुझसे झपट
रिश्तों की जमा पूँजी में भी
सबने लगाई मुझे चपत
कमाई मेरे इस जीवन की
हुई न मुझ पर खपत
नोचने को तैयार थे बैठे
मेरे अपने धूर्त बगुला भगत
गल रहा निज व्यथा में
छुटकारे की है मेरी जुगत
हार ना जाऊँ इस जीवन से
रूठी क़िस्मत से सब चौपट
ठुकरा दिया हर एक ने जब
प्रभु पहुँचा हूँ तुम्हारी चौखट
कृपा करो हे दीनदयाल
हर लो मेरी विपदा विकट
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