मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 Feb 2022 (अंक: 198, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
रखा है हर एक समान
उठाए चलता सर पर दुकान
मूल्य सबका एक समान
मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
गाँव देहात गली मोहल्ला
हैं सब मेरे हाट बाज़ार
दर दर मैं हूँ फिरता रहता
सबको रहता मेरा इंतज़ार
प्लास्टिक से बना हर एक सामान
छोटी-मोटी ज़रूरतों का है समाधान
कर देता सब का काम आसान
मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
मग छाननी या हो डलिया
बाल्टी हो या साबुन की डिबिया
सबका रखता हूँ इंतज़ाम
मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
सर के बोझ संग परिवार का भी बोझ
अहले सुबह निकल जाता हूँ मैं रोज़
पर मेरी हालत ख़ाली डब्बों सी
कभी-कभी मिलती नहीं सूखी रोटी भी
फिर भी मेहनत मेरी आन बान शान
तमाम दुख भी हो जाते हैं दूर जब
मुझे देखकर परिवार वाले बिखेरते हैं मुस्कान
मैं फेरीवाला हूँ साहिबान
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