चमकते सितारे
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता आशीष कुमार15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
नन्हे नन्हे और प्यारे प्यारे
आसमान में चमकते सितारे
देखा दूर धरती की गोद से
लगता पलक झपकाते सारे
ऊपर कहीं कोई बस्ती तो नहीं
जहाँ के चिराग़ दिखाएँ नज़ारे
उड़ा ले गया कोई जुगनुओं को
आकाशगंगा सा टिमटिमाते सारे
जला आया कोई दीपक लाखों
या मोमबत्तियाँ धरती को निहारें
लालटेनों की रोशनी तो नहीं
जो सुबह-सवेरे बुझ जाते बेचारे
जड़ दिए हों किसी ने हीरे-मोती
शान से उस जहाँ में दमकते न्यारे
छुपते कभी बादलों की ओट में
आँख मिचौली जैसे करते सारे
हम भी चमकें आसमान में
घर वाले हैं कहते हमारे
ध्रुव तारा या सप्तर्षि सा बन
यूँ ही सबके हो जाते दुलारे
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