हर पड़ाव बदला रंगशाला में
काव्य साहित्य | कविता आशीष कुमार1 May 2023 (अंक: 228, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
ज़िम्मेदारियाँ बख़ूबी निभाईं
यहाँ तरह-तरह की शाला में
एक उम्र में कई पड़ाव देखे
हर पड़ाव बदला रंगशाला में
जब तक थोड़ा नटखटपन जागा
हम भेज दिए गए पाठशाला में
गुरुजन से समझदारी पा कर
फिर उलझे रहे प्रयोगशाला में
रंग भरने की जब उमंग जगी
हम पहुँच गए चित्रशाला में
निशानियाँ मिलेंगी दीवारों पर
जो छोड़ी है अतिथिशाला में
जब जवानी मूँछों संग आई
डोले बनाये व्यायामशाला में
मनोरंजन की जब तलब लगी
गये कई दफ़ा नृत्यशाला में
धू-धू कर जब इश्क़ में जले
मानो दिल बदला अग्निशाला में
फिर शामों की गिनती नहीं
जो बीत गई मधुशाला में
एक पड़ाव ऐसा भी आया
रोगों ने दौड़ाया आरोग्यशाला में
ग्रह नक्षत्र सब उल्टे पड़ गये
उपाय न मिला वेधशाला में
तीर्थाटन की उम्र है बीती
मंदिर-मंदिर धर्मशाला में
अंतिम पड़ाव अब ले आया
लिपटे राम भरोसे दुशाला में
जीवन अभिनय सच्चा रहा
दुनिया की इस कर्मशाला में
एक उम्र में कई पड़ाव देखे
हर पड़ाव बदला रंगशाला में
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