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मुबारक हो मूर्ख दिवस

 

सोचा एक दिन मन ने मेरे
कर ठिठोली ज़रा ले हँस
थोड़ी सी करके ख़ुराफ़ात
हम भी मना लें मूर्ख दिवस
 
योजना बना ली चुपके से
इंतज़ार था दिवस का बस
दाना डालूँगा मित्र को मैं
पंछी जायेगा जाल में फँस
 
मना बॉस को फोन कराया
होने वाला है तेरा उत्कर्ष
ख़ुशख़बरी सुन ले मुझसे तू
है तेरा कल तरक़्क़ी दिवस
 
पहुँचा सुबह ही मित्र के घर
देने को बधाई उसे बरबस
हाथ थमाकर उपहार बोला
मुबारक हो तरक़्क़ी दिवस
 
आवभगत कर मुझे बिठाया
फिर लाया कोई ठंडा रस
बोला वो गर्मी दूर भगा ले
ना रख तू कोई कशमकश
 
तैर रहा था बर्फ़ का टुकड़ा
गर्मी ने किया पीने को विवश
काली मिर्च का घोल था वो
पिया समझ कर गन्ने का रस
 
जलती जिह्वा ने शोर मचाया
सामने से मित्र ने दिया हँस
बोला कर ली थोड़ी सी ठिठोली
मुबारक हो यार मूर्ख दिवस
 
बहुत हुआ हँसी मज़ाक़ तेरा
चल यार तू अब दिल से हँस
तरक़्क़ी की ख़बर सुनकर तेरी
लाया हूँ जो ले खोलकर हँस
 
हँसते-हँसते खोला उपहार
मुक्‍के पड़े उसको कस-कस
मुँह पकड़ कर बैठा फिर नीचे
हुआ नहीं ज़रा भी टस से मस
 
तरक़्क़ी दिवस तो था बहाना
बाबू हँस सके तो ज़ोरों से हँस
दिल की अंतरिम गहराइयों से
मुबारक हो तुम्हें भी मूर्ख दिवस

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