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ख़ुद की तलाश

 

भटक रहा हूँ मन के अँधियारे में
बेसब्री से रोशनी की आस में हूँ
छाप छोड़नी है मुझे भी अपनी
मैं ख़ुद की अब तलाश में हूँ
 
पसीना बहा कर चार पैसे कमाये
लगता था सुकून के पास में हूँ
ये चार पैसे भी आज कम पड़ गये
अब ख़ुद को कमाने के उल्लास में हूँ
 
जानता हूँ, है बस चार दिन की ज़िंदगानी
इसकी अहमियत के एहसास में हूँ
उड़ने वाला है एक दिन, रूह ए परिंदा
पहले ख़ुद को जी लूँ, इस अरदास में हूँ
 
छान रहा हूँ, मन का कोना-कोना
दुनिया से दूर अज्ञातवास में हूँ
उतार फेंकी है, चादर माया मोह की
सुकून है कि ख़ुद के लिबास में हूँ
 
नहीं है लोगों के शाबाशी की चिंता
ख़ुद की पीठ थपथपाने के प्रयास में हूँ
जन्नत तो माना उस दुनिया का सच है
इसे यहीं पा लूँ, इस विश्वास में हूँ
 
ख़ुद का साथी बनना है मुझको
टूटी झोपड़ी सही, अपने निवास में हूँ
नहीं देनी है, किसी को भी अपनी नज़ीर
बस ख़ुद की अस्मिता के विकास में हूँ

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