अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

हँसाता-गुदगुदाता व्यंग्य संग्रह : हमारे व्हॉटस् एप वीर 

कृति : हमारे वॉट्स एप वीर 
लेखक : संजीव कुमार गंगवार 
प्रकाशक : साहित्य संचय, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष : 2019
मूल्य : 250 रुपये

संजीव कुमार गंगवार जी की नवीन कृति - हमारे व्हॉटस् एप वीर प्राप्त हुई। ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय को प्राप्त यह पुस्तक अब तक की सबसे श्रेष्ठ पुस्तक है हास्य के क्षेत्र में, हँसता-गुदगुदाता व्यंग्यों का अनमोल गुलदस्ता है उक्त संग्रह। सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द लिखे व्यंग्य पाठकों को हँसते-गुदगुदाते रहते हैं, पाठक अगर एक बार किताब को पढ़ने बैठ जाये तो फिर किताब में ऐसा खो जायेगा कि सारे व्यंग्य ही पढ़ डालेगा। अब देखिये किताब के पहले व्यंग्य - हमारे वॉट्स एप वीर में गंगवार जी की लेखनी का चमत्कार -

"एक समय था जबकि हमारे देश में लोग सूर्योदय के साथ उठा करते थे। पर अब भगवान सूर्य का स्थान भगवान वॉट्स एप ने ले लिया है। भगवान वॉटस एप की अद्भुत माया में लोग इस क़दर डूबे हुए हैं कि यदि कोई बड़ी प्रतियोगिता कराई जाये तो सबसे बड़ा श्रद्धालु चयन करने में अच्छी ख़ासी परेशानी हो सकती है।"

अब आगे बढ़ते हुए बात करते हैं उनके व्यंग्य - "कभी-कभी कुछ अच्छे मैसेज", यह व्यंग्य मेरे अनुसार कृति का सबसे सुंदर व्यंग्य है। क़लमकार ने कवि देवमणि पाण्डेय की कविता -

“सावन की पुरवईया गायब 
पोखर, ताल, तलईया गायब।
कट गये सारे पेड़ गाँव के 
कोयल और गौरईया गायब।”...

से शुरूआत की है। बाद में राजनीति विषय को लेकर अच्छा लिखा है।

"राजनीति मुहावरे से देखें तो भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनसे विपक्ष और उसके समर्थकों ने सबसे ज्यादा नफरत की है। कभी सुना नहीं गया - मन मोहन भक्त, राजीव भक्त या इंदिरा भक्त। यहाँ तक कि अटल भक्त भी नहीं सुना गया। लेकिन मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही मोदीभक्त नाम का नया शब्द गढ़ लिया गया। इसके पीछे वही नफरत जिम्मेदार है जो विपक्षी पार्टियों और उनके समर्थकों ने मोदी जी से की है।"

गंगवार जी आगे लिखते हैं - "मोदी जी ने जैसे ही अपनी लात उठाई। भक्त तुरन्त बोल उठा, वो देखो-देखो मोदी जी कालेधन वालों की कमर पर लात मारने वाले हैं। तभी मोदी की भरपूर लात खुद भक्त की कमर पर आकर लगी। भक्त जमीन पर औंधे मुँह जा पड़ा। फिर वो अपनी कमर मलते-मलते धीरे से उठा तो उसके चेहरे पर प्रशंसा के भाव छाये हुए थे। भक्त बोला - इसे कहते हैं समानता की राजनीति। अपने पराये में कोई भेद नहीं करते मोदी जी। तभी मोदी का घूंसा भक्त की आँख पर पड़ा और तुरन्त उसे एक आँख से दिखाई देना बंद हो गया। भक्त खुशी से चिल्लाया, वाह ! वाह! सबको एक नजर से देखने की इससे बेहतर शिक्षा मोदी जी के सिवा कोई नहीं दे सकता। इसके बाद मोदी लट्ठ लेकर भक्त के ऊपर पिल पड़ा। भक्त बेहोश होते-होते बोला, धन्यवाद मोदी जी आपकी कृपा से अब कुछ दिन हॉस्पीटल में आराम करने का मौका मिला। वैसे भी काम करते - करते बहुत थक गया था। तभी एक आम आदमी बोला - अबे गधे मोदी तुझे मार रहा है। 
"तू चुपकर देशद्रोही, भक्त कमजोर आवाज में बोला, वहाँ बॉर्डर पर रोजज़सैनिक मार खा रहे हैं तो क्या मैं एक दिन मोदी से मार नहीं खा सकता देशहित में।" मार खाते खाते भक्त बेहोश हो गया। इसे कहते हैं सच्चा मोदी भक्त।"

कुल मिलाकर सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द लिखे गये क़रीब 27 शानदार व्यंग्यों को प्रकाशित किया गया है उक्त कृति में। 160 पृष्टों का गुदगुदाता यह व्यंग्य संग्रह साहित्य जगत में अनूठा साबित हो रहा है। इंटरनेट के इस युग में संजीव जी की लेखनी कमाल कर रही है। संजीव जी को हमारी ओर से कोटि कोटि साधुवाद! 

समीक्षक : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

चिन्तन

काम की बात

किशोर साहित्य कविता

लघुकथा

बाल साहित्य कविता

वृत्तांत

ऐतिहासिक

कविता-मुक्तक

सांस्कृतिक आलेख

पुस्तक चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं