मैं महकती हुई मिट्टी हूँ
काव्य साहित्य | कविता ममता मालवीय 'अनामिका'1 Dec 2019
मैं महकती हुई मिट्टी हूँ,
किसी आँगन की;
मुझको दीवार बनाने पर,
तुली है दुनिया।
कोमल हृदय, चंचल मन को;
बेड़िया पहनाने पर,
तुली है दुनिया।
मै नयन लोभित,
काजल हूँ किसी माँ का;
मुझको कलंक साबित करने पर,
तुली है दुनिया।
में कैसे साबित करूँ,
अपने अस्तित्व को;
मुझे जड़ से मिटाने पर,
तुली है दुनिया।
मै रंग बिखेरती तितली हूँ,
किसी पिता की;
मुझे बेरंग बनाने पर,
तुली है दुनिया ।
कैसे ख़ुद की आन बचाऊँ,
मुझे बेनाम बनाने पर,
तुली है दुनिया।
मैं मन हर्षित पुष्प हूँ,
किसी भाई का;
मुझे मुट्ठी में दबाने
लगी है दुनिया।
कैसे खुद की लाज बचाऊँ,
मेरी गरिमा की बाज़ार में,
बोली लगाने लगी है दुनिया।
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