फीका-फीका फाग
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सत्यवान सौरभ1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
बदले-बदले रंग है, फीका-फीका फाग!
ढपली भी गाने लगी, अब तो बदले राग!!
फागुन बैठा देखता, ख़ाली हैं चौपाल!
उतरे-उतरे रंग है, फीके सभी गुलाल!!
बढ़ती जाए कालिमा, मन-मन में हर साल!
रंगों से कैसे मलें, इक दूजे के गाल!!
सूनी-सूनी होलिका, फीका-फीका फाग!
रहा मनों में हैं नहीं, इक दूजे से राग!!
स्वार्थ रंगी जब भावना, रही मनों को चीर!
बोलो सौरभ फाग में, कैसे उड़े अबीर!!
मन को ऐसे रंग लें, भर दें ऐसा प्यार!
हर पल हर दिन ही रहे, होली का त्यौहार!!
फ़ौजी साजन से करे, सजनी एक सवाल!
भीगी सारी गोरियाँ, मेरे सूने गाल!!
आओ सजनी मैं रँगूँ, तेरे गोरे गाल!
अनायास होने लगा, मनवा आज गुलाल!!
सजनी तेरे सँग रचूँ, ऐसा एक धमाल!
तुझमें ख़ुद को घोल दूँ, जैसे रंग गुलाल!!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
दोहे | डॉ. सत्यवान सौरभमन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार! हर…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सामाजिक आलेख
- अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
- घर पर मिली भावनात्मक और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार है
- टेलीविज़न और सिनेमा के साथ जुड़े राष्ट्रीय हित
- तपती धरती, संकट में अस्तित्व
- दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है
- नए साल के सपने जो भारत को सोने न दें
- रामायण सनातन संस्कृति की आधारशिला
- समय की रेत पर छाप छोड़ती युवा लेखिका—प्रियंका सौरभ
- समाज के उत्थान और सुधार में स्कूल और धार्मिक संस्थान
- सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव
- सोशल मीडिया पर स्क्रॉल होती ज़िन्दगी
साहित्यिक आलेख
दोहे
- अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
- आशाओं के रंग
- उड़े तिरंगा बीच नभ
- एक-नेक हरियाणवी
- कायर, धोखेबाज़ जने, जने नहीं क्यों बोस!!
- क्यों नारी बेचैन
- गुरुवर जलते दीप से
- चलते चीते चाल
- टूट रहे परिवार!
- दादी का संदूक!
- देख दुखी हैं कृष्ण
- दो-दो हिन्दुस्तान
- पिता नीम का पेड़!
- फीका-फीका फाग
- बन सौरभ तू बुद्ध
- बैठे अपने दूर
- मंगल हो नववर्ष
- रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम
- सहमा-सहमा आज
- हर दिन करवा चौथ
- हर दिन होगी तीज
- हिंदी हृदय गान है
सांस्कृतिक आलेख
ललित निबन्ध
पर्यटन
चिन्तन
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
ऐतिहासिक
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं