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मकर संक्रांति पर्व

मकर संक्रांति पर्व भारतवर्ष का एक महत्त्वपूर्ण पर्व है जो खरमास के अंत में संक्रांति के दिन मनाया जाता है। 

इस दिन सूर्य दक्षिणायन छोड़कर उत्तरायण में प्रवेश करता है। देश के विभिन्न प्रांतों में इसके अलग नाम प्रचलित हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी पर्व, असम में बिहू तो पंजाब और जम्मू कश्मीर में लोहड़ी नाम से मनाया जाता है। दक्षिण के कुछ राज्यों में संक्रांति पर्व के रूप में मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस पर्व को दधि संक्रांति भी कहा जाता है। 

शरद ऋतु की समाप्ति के मुहाने पर यह पर्व प्रायः 14 जनवरी या 15 जनवरी को मनाया जाता है हालाँकि अँग्रेज़ी तिथि से इस पर्व का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। 

इस दिन दही चूड़ा, खिचड़ी, तिल के लड्डू और मीठे पकवान खाने का रिवाज़ है। 

आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें देखने को मिलती हैं मकर संक्रांति के दिन। बच्चे और युवक पतंग उड़ाने का आनंद लेते हैं। 

मकर संक्रांति के दिन लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अन्य पावन नदियों में स्नान कर ग़रीबों के बीच अनाज, रुपए-पैसे, कंबल, वस्त्र आदि दान करते हैं। 

मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान को तिल गुड़ के साथ अर्घ्य देने और पूजा करने से सालों भर स्वस्थ रहने और इच्छाएँ पूरी होने का प्रसाद मिलता है। 

यूँ तो मकर संक्रांति के साथ कई पौराणिक और धार्मिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। कहते हैं नाराज़ भगवान सूर्य आज के ही दिन अपने पुत्र शनिदेव के घर पधारे थे और पिता पुत्र का मधुर सम्बन्ध स्थापित हुआ था। दूसरी कथा है कि आज के दिन ब्रह्मा विष्णु महेश और सभी देवी देवता अपना वेश बदल कर संगम प्रयागराज में स्नान करते हैं। 

ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सुर सरिता गंगाजी का धरती पर अवतरण हुआ था। बंगाल के सागर द्वीप में प्रसिद्ध गंगा सागर मेले में लाखों लोग मकर संक्रांति के अवसर पर पहुँचते हैं और गंगा स्नान करते हैं।

बंगाल के ही जयदेव केंदुली गाँव में एक महीने तक चलनेवाला केंदुली मेला लगता है। इस मेले का प्रमुख आकर्षण बाउल गाना और कीर्तन पाला गान है। संस्कृत के विद्वान और गीतगोविंद के कवि जयदेव की स्मृति में यह मेला लगता है। अजय नदी में स्नान कर लोग खिचड़ी भोग ग्रहण करते हैं। 

बिहार के बौंसी मेला की भी बड़ी प्रसिद्धि है। मंदार पर्वत की तलहटी में सप्ताह-व्यापी मेले में सैकड़ों भक्त दर्शक पहुँचते हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत का उपयोग‌ मथानी की तरह किया गया था। 

मकर संक्रांति में आदिवासियों ख़ासकर साफा होड़ समुदाय के नर-नारियों की पारंपरिक पूजन अर्चना और भक्ति देखने योग्य होती है। 

प्रकृति के पर्व मकर संक्रांति का स्वागत है। 

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