जुगाड़
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
“आपके परिवार में पाँच वोटर हैं। ये रहे पंद्रह सौ रुपये। मुखिया जी को ही वोट देना है। दूसरी बार भी चुनाव जीत गई तो विकास की गंगा बहेगी इस पंचायत में,” एक नेतानुमा युवक ने पाँच सौ रुपए के तीन नोट दिखाते हुए कहा।
“पिछली बार भी तो इन्हीं को वोट दिया था। मुखिया जी ख़ुद बोली थी जीतने पर मुझे भी पक्का मकान मिलेगा। कहाँ मिला? मेरी झोपड़ी आज भी अपनी हालत पर रो रही है। अंदर घुसकर देखो, झोपड़ी के अंदर से आसमान दिखाई पड़ेगा,” बूढ़े ने जवाब दिया जो परिवार का हेड था।
“अरे, पिछले पाँच साल में दर्जनों मकान बने, मुखिया जी की मेहरबानी से। तुम्हारा भी बन जायेगा इस बार,” युवक ने कहा।
“हाँ बन जायेगा! सैंक्शन होने के पहले कमीशन में पंद्रह हज़ार रुपये का जुगाड़ कर पाऊँगा तब न,” बूढ़ा मन ही मन दर्द को पी रहा था।
“क्या हुआ? रुपये ले लो। जीतेगी तो अपनी मुखिया ही,” बूढ़े को असमंजस की स्थिति में देख युवक ने कहा।
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