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समझदारी

"ज्योति, अब तुम शिक्षिका बन गई। उम्र भी तेईस हो गई, अब तो तुम्हें आपत्ति नहीं है?" अपने दोस्त की बातें सुन ज्योति गंभीर हो गई।

"चुप क्यों हो? कहीं मैं तुम्हे पसंद नहीं या कोई और तुम्हें पसंद है, साफ़-साफ़ आज बता दो," राकेश ने कहा।

दोनों ने एक साथ ग्रेजुएशन किया, एक साल पहले ही बैंक में पीओ के पद पर राकेश की नियुक्ति हो गई थी।

ज्योति की आँखों में आँसू देख राकेश से रहा नहीं गया, ज्योति के हाथों को अपने हाथों में लेकर पूछा, "क्या बात है ज्योति, तुम रो रही हो?"

ज्योति ने आँखें पोंछी और भर्राई आवाज़ में कहा, "राकेश मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँ। तुम्हें पाकर किसे ख़ुशी नहीं होगी? लेकिन अपने मन की व्यथा तुम्हें कैसे बताऊँ?"

"ऐसी कौन सी व्यथा है जो तुम मुझे बता नहीं सकती?" राकेश ने पूछा।

"तुम तो जानते हो राकेश, मेरी किरण दीदी विधवा है। मात्र बाईस साल की उम्र में विधवा हो गई। कोई संतान भी नहीं है।"

"किरण दी जितनी सुंदर है उतनी ही अच्छे स्वभाव की," राकेश ने कहा।

"क्या दीदी की शादी नहीं होनी चाहिए? समाज को आपत्ति होगी?" ज्योति ने जानना चाहा।

"आपत्ति? क्यों आपत्ति होगी?"

"समाज के डर से मेरे माता-पिता राज़ी नहीं हुए एक साल पहले की बात है। उन लोगों को डर है कि दीदी की शादी मेरी शादी में बाधा बनेगी।" 

"फ़ालतू डर!"

"क्या दीदी की शादी के बाद हम दोनों शादी करें तो अच्छा नहीं होगा?"

"बिल्कुल अच्छा होगा। मेरी ख़ुशी दुगुनी होगी," राकेश ने अपनी सहमति जताई।

 राकेश की बातों से संतोष और ख़ुशी का भाव दिखाई पड़ा ज्योति की आँखों में।

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