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रँगा सियार

 

क्लिनिक के बाहर काफ़ी भीड़ थी। लोग चिल्ला रहे थे, कुछ लोग तोड़फोड़ करने को आमादा थे। 

“मारो रँगे सियार को। डॉक्टर नहीं जल्लाद है। डिग्री भी नक़ली है,” एक तीस बत्तीस साल का आदमी काफ़ी उत्तेजित होकर चिल्ला रहा था। 

“मेरे बेटे को मार दिया। ग़लत दवाई दे दी इस डॉक्टर ने,” रोते-रोते बुरा हाल था एक औरत का। 

“कृपया मुझे छोड़ दो, बचाओ मुझे . . . लोग मेरी जान ले लेंगे।”

लोगों की गिरफ़्त से निकलने का प्रयास कर रहा था डॉक्टर। उसके चेहरे से हवाइयाँ उड़ रही थीं। 

“तुम नक़ली हो। तुम्हारा रजिस्ट्रेशन नंबर भी ग़लत है। तुम्हें जेल जाना ही होगा,” एक युवा ग़ुस्सा में बोल रहा था। 

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