धिक्कार
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे1 Mar 2023 (अंक: 224, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर सुमन के चैंबर में घुसते ही साठ वर्षीय अनुपम बाबू के शरीर में एक सिहरन-सी दौड़ गई। कुछ देर तक उनकी आँखें डॉक्टर के चेहरे पर टिकी रहीं। डॉक्टर के बायें कान के नीचे एक बड़ा-सा मस्सा था।
“क्या तकलीफ़ है आपको?” डॉक्टर ने सामने रखी तिपाई पर बैठने का इशारा कर पूछा।
“जी, मेरे सीने में दबाव रहता है और हल्का दर्द भी,” अनुपम बाबू ने बताया।
डॉक्टर ने आला लगाकर देखा और पर्ची पर दवाई और कुछ जाँच की सलाह लिख दी।
“चिंता की कोई बात नहीं है। परिवार और बच्चों के साथ आनंद पूर्वक जीने की कोशिश करें,” डॉक्टर ने सलाह दी।
“डॉक्टर साहब! एक बात पूछूँ। बुरा तो नहीं मानेंगे।”
“क्या बात? पूछ ही लीजिए!”
“आपके माता-पिता . . .?”
“ओह! मेरे माता-पिता नहीं रहे। दोनों स्वर्ग सिधार गए हैं।”
“बहुत भाग्यशाली थे आप जैसी संतान को जन्म देने वाले।”
“बिल्कुल नहीं!” डॉक्टर भावावेश में आ गए।
“मैं जब तीन साल का था मुझे अनाथ आश्रम में छोड़कर चले गए मुझे जन्म देने वाले। मुझे इस राज़ का पता भी नहीं चलता अगर मेरा पालन-पोषण करने और मुझे डॉक्टर बनाने वाले मेरे असल पिता के बक्से में मिली डायरी में यह बात लिखी नहीं होती।”
“सॉरी डॉक्टर साहब!” अनुपम बाबू की आँखें गीली हो चुकी थीं।
“मैं तुम्हें नहीं बता सकता डॉक्टर कि मैं ही वह अभागा और गिरा हुआ इंसान हूँ जिन्होंने तुम्हें अपने शहर से बहुत दूर एक अनाथ आश्रम के हवाले कर दिया था . . . लगभग पैंतीस साल पहले . . . क्योंकि तुम ट्रांसजेंडर थे,” अनुपम बाबू की अंतरात्मा उन्हें धिक्कार रही थी।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
लघुकथा
- अपने हिस्से का आसमान
- असामाजिक
- आँखें
- आत्मा की तृप्ति
- आस्तीन का साँप
- कचरे में मिली लक्ष्मी
- कबीरा खड़ा बाज़ार में
- कश्मकश
- गुलाब की ख़ुश्बू
- घोड़े की सवारी
- चिराग़ तले अँधेरा
- चिरैया बिना आँगन सूना
- चेहरे का रंग
- जहाँ चाह वहाँ राह
- जीत
- जुगाड़
- जोश
- ठेकुआ
- डस्टबिन
- डाकिया
- तक़दीर
- दर्द
- दाँव
- दीये का मोल
- दो टूक बात
- धिक्कार
- धूप और बारिश
- धृतराष्ट्र अभी भी ज़िन्दा है
- नई दिशा
- नहीं
- नास्तिक
- नीम तले
- नीम हकीम ख़तरा-ए-जान
- पहचान
- पहली पगार
- पुरानी किताबें
- पुश्तैनी पेशा
- प्याजी
- प्यासा पनघट
- बदलाव
- बरकत
- बहू की भूमिका
- भीख
- भेदभाव
- महँगाई मार गई
- माँ की भूमिका
- मैं ज़िन्दा नहीं हूँ
- रँगा सियार
- लड़ाई
- लेटर बॉक्स
- विकल्प
- संवेदना
- सतरंगी छटा
- सपने
- सफलता का राज़
- समझदारी
- सम्बन्ध
- सम्मान
- सर्दी
- सर्वनाश
- सुकून
- सौ रुपए की सब्ज़ी
- हैप्पी दिवाली
- ख़ुद्दारी
- फ़र्क़
कविता
कविता - हाइकु
कविता - क्षणिका
अनूदित कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता-मुक्तक
किशोर साहित्य लघुकथा
कहानी
सांस्कृतिक आलेख
ऐतिहासिक
रचना समीक्षा
ललित कला
कविता-सेदोका
साहित्यिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं