दर्द
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे15 Feb 2024 (अंक: 247, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
“सुनो जी। मुझे लगता है, हम दोनों के सम्बन्ध में कुछ बासीपन-सा आ गया है। ऐसा कुछ करो न कि कुछ ताज़गी आ जाये।”
” ये तुम सुबह-सुबह क्या कह रही हो?” चाय की प्याली को टेबल पर रखते हुए पति ने कहा।
“क्यूँ, मैं ग़लत कह रही हूँ क्या? जो महसूस कर रही हूँ, उसे ही बयान कर रही हूँ,” पचपन साल की पत्नी ने बेहिचक कहा।
“हमारी शादी के तीस साल हो गए। कभी पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर रार नहीं हुई। दोनों बच्चे सेटल्ड होकर अपने-अपने कार्य स्थल पर सपरिवार मज़े में हैं। तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं। फिर . . .?”
“ये सारी बातें ग़लत नहीं हैं। लेकिन . . .”
“लेकिन क्या?”
“क्या आप मेरे दोस्त नहीं बन सकते?”
“पत्नी की जगह दोस्त! क्या बात करती हो?”
“देखो, आप कितनी फ़िक्र रखते हैं अपने दोस्तों की। उनका जन्मदिवस हो या वैवाहिक वर्षगाँठ कभी विश करना नहीं भूलते। और . . . और आपको पता है आज कौन-सा दिन है?”
“ओह सॉरी, मॉय डियर फ़्रेंड! हैप्पी बर्थडे टू यू! मुझे रात बारह बजे के बाद ही विश करना चाहिए था पर . . . चलो आज सोशल मीडिया से दूर रहकर एक यादगार दिन मनाते हैं।”
“सच्चे दिल से?”
“बिल्कुल। हाँ भाई, मेरी बेस्ट फ़्रेंड तो तुम्हीं हो न?”
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