अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

दर्द

 

“सुनो जी। मुझे लगता है, हम दोनों के सम्बन्ध में कुछ बासीपन-सा आ गया है। ऐसा कुछ करो न कि कुछ ताज़गी आ जाये।”

” ये तुम सुबह-सुबह क्या कह रही हो?” चाय की प्याली को टेबल पर रखते हुए पति ने कहा। 

“क्यूँ, मैं ग़लत कह रही हूँ क्या? जो महसूस कर रही हूँ, उसे ही बयान कर रही हूँ,” पचपन साल की पत्नी ने बेहिचक कहा। 

“हमारी शादी के तीस साल हो गए। कभी पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर रार नहीं हुई। दोनों बच्चे सेटल्ड होकर अपने-अपने कार्य स्थल पर सपरिवार मज़े में हैं। तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं। फिर . . .?”

“ये सारी बातें ग़लत नहीं हैं। लेकिन . . .”

“लेकिन क्या?” 

“क्या आप मेरे दोस्त नहीं बन सकते?” 

“पत्नी की जगह दोस्त! क्या बात करती हो?” 

“देखो, आप कितनी फ़िक्र रखते हैं अपने दोस्तों की। उनका जन्मदिवस हो या वैवाहिक वर्षगाँठ कभी विश करना नहीं भूलते। और . . . और आपको पता है आज कौन-सा दिन है?” 

“ओह सॉरी, मॉय डियर फ़्रेंड! हैप्पी बर्थडे टू यू! मुझे रात बारह बजे के बाद ही विश करना चाहिए था पर . . . चलो आज सोशल मीडिया से दूर रहकर एक यादगार दिन मनाते हैं।”

“सच्चे दिल से?” 

“बिल्कुल। हाँ भाई, मेरी बेस्ट फ़्रेंड तो तुम्हीं हो न?” 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा

कविता

कविता - हाइकु

कविता - क्षणिका

अनूदित कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

कविता-मुक्तक

किशोर साहित्य लघुकथा

कहानी

सांस्कृतिक आलेख

ऐतिहासिक

रचना समीक्षा

ललित कला

कविता-सेदोका

साहित्यिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं