सर्वनाश
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे1 May 2023 (अंक: 228, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
“अरे वाह! आ गई!” डोर बेल की आवाज़ सुन दीपक बाबू ने दरवाज़ा खोला, सामने पत्नी खड़ी थी।
“क्लिनिक में आज ज़्यादा भीड़ नहीं थी। चश्मा भी मिल गया,” पचपन वर्ष की सुधा ने कमरे के अंदर घुसते ही कहा।
“वाह, घर की साफ़-सफ़ाई तो बहुत अच्छी की है तुमने,” सुधा ने पति की प्रशंसा की।
“चलो हाथ मुँह धोकर बैठो। तुम्हारे लिए चाय बना कर लाता हूँ,” दीपक बाबू ने कहा।
“एक कप अपने लिए भी तैयार कर लेना,” सुधा ने कहा।
दीपक बाबू चाय बनाकर लाए और दोनों सोफ़े पर बैठकर चाय पीने लगे।
“सुनो, अब किचन से तुम्हारी छुट्टी। पिछले पंद्रह दिनों से घर गृहस्थी का सारा काम तुमने किया। बहुत-बहुत शुक्रिया।”
“अरे काहे को शुक्रिया। तुम कहती थी कि पति पत्नी का काम कभी नहीं कर सकता है। दाई की अनुपस्थिति में सब काम मैंने कर दिया न।”
पति की बातें सुन सुधा मुस्कुराई और बोली, “मुझे इतनी उम्मीद नहीं थी दीपक। रिटायरमेंट के बाद तुम पाक कला में भी . . . अरे कुछ जल रहा है। गंध आ रही है,” सुधा के उठने के पहले ही दीपक तेज़ी से किचन में घुसा।
“सर्वनाश! सब दूध जले गेल।”
दीपक बाबू गैस सिलेंडर का नॉब बंद करते हुए कहा।
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