तक़दीर
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
स्कूल जाते वक़्त सामने दो हमउम्र बच्चों को देख रूपा ने अपने भाई से कहा, “भैया ये दोनों स्कूल क्यों नहीं जाते?”
“चलो आज उन्हीं लोगों से पूछ लेते हैं,” भाई ने कहा।
“सुनो तुम लोग स्कूल क्यों नहीं जाते?” भाई ने बच्चों से पूछा।
“हमारी तक़दीर में स्कूल जाना नहीं लिखा है। हम ग़रीब हैं। माँ बीमार है। हम दोनों भाई-बहन दिनभर कचरा बीनते हैं, स्कूल कैसे जा पायेंगे?” उम्र में भाई से कुछ साल बड़ी बहन ने बताया।
“तुम्हारे पिताजी नहीं हैं?” रूपा ने पूछा।
“नहीं! बाबूजी मज़दूरी करते थे। पिछले साल कोरोना से उनकी मृत्यु हो गई,” बहन ने नम आँखों से जवाब दिया।
“ओह! सुनो हम दोनों अपनी-अपनी पुरानी किताबें और ड्रेस तुम दोनों को दे देंगे। और मम्मी से कुछ मदद भी दिला देंगे। स्कूल में दोपहर का भोजन भी मिल जाता है। स्कूल जाओगे न?” भाई ने कहा।
“स्कूल जाने से ही तुम्हारी तक़दीर भी बदल जाएगी,” रूपा ने भी अपने भाई की बातों से सहमति जताई।
“माँ को ठीक होने दो। हम दोनों भाई-बहन स्कूल जायेंगे और माँ कचरा बीनकर ही . . .।”
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