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मंगलदीप 


मूल रचयिता: गौरी प्रसन्न मजूमदार (बंगला)
अनुवाद: निर्मल कुमार दे

 

तम से घिरी आँखों में
रोशनी भर दो प्रभु, 
मंगल दीप जलाकर
माफ़ कर दो उन्हें
जिन्हें तेरा अहसास नहीं
तम से घिरी आँखों में
रोशनी भर दो प्रभु
मंगल दीप जलाकर। 
 
तुम नित भेजते रवि को
अन्धकार दूर करने
अहसास दिला दो तुम उनको
पत्थर में फूल खिला कर
 
सूखी धरती पर प्रभु
करुणा नीर बहा दो
माफ़ कर दो उन्हें
जिन्हें तेरा अहसास नहीं
तम से घिरी आँखों में
रोशनी भर दो प्रभु
मंगल दीप जलाकर। 
 
अपराध नहीं है उसका
जो जन्म लिया दलदल में, 
जीवन नया दो उसको
निर्मल कमल बनाकर। 
 
भटके हुए राहगीर को
रास्ता सही दिखाओ
माफ़ कर दो उन्हें
जिन्हें तेरा अहसास नहीं
तम से घिरी आँखों में
रोशनी भर दो प्रभु
मंगल दीप जलाकर॥

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