कबीरा खड़ा बाज़ार में
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे1 Jun 2023 (अंक: 230, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
“सर! आप कभी-कभी परिणाम की चिंता किए बिना अप्रिय बातें कह देते हैं। कितने बच्चों को आपकी बातें चुभ सी गईं होंगी।”
“अरे भाई, मैंने कोई ग़लत तो नहीं कहा। इन बच्चों को अपने भविष्य की चिंता होनी चाहिए और इसके लिए अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”
“लेकिन अप्रिय सत्य कहकर आप अनपॉपुलर होने का रिस्क जो लेते हैं।”
“आप की बातों में दम है, लेकिन अप्रिय सत्य नहीं कहने से जन हित का बड़ा नुक़्सान हो और अपना ज़मीर चुप रहने से रोके तो मैं क्या करूँ?”
“आप तो बहुत पढ़े लिखे हैं, सुकरात, जीसस, विभीषण की नियति से वाक़िफ़ ही होंगे।”
“बिल्कुल, लेकिन इन महात्माओं को कभी भी अफ़सोस नहीं रहा होगा,” मैंने कहा और उनकी आँखों में पढ़ने की कोशिश की।
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