संस्कार
कथा साहित्य | कहानी निर्मल कुमार दे15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
जून का महीना और दोपहर का समय। धूप और गर्मी से विमल बाबू का चेहरा सूख सा गया था। दो बस स्टैंड की बीच की दूरी लगभग एक किलोमीटर।
विमल बाबू अपने साथ छाता भी नहीं लाए थे। उसे आभास नहीं था धूप इतनी कड़ी होगी।
बरहरवा से बरहेट आने में मात्र चालीस मिनट लगे। इधर बरहेट बरहरवा रोड की स्थिति बहुत सुधरी है। बस से उतरने के बाद उन्होंने इधर-उधर नज़र दौड़ाई लेकिन कहीं रिक्शा या ऑटो दिखाई नहीं पड़ा।
विमल बाबू पैदल ही चल पड़े अगले बस स्टैंड के लिए। बाज़ार से होकर जा रहे थे। मारवाड़ी चौक के पास जैसे ही पहुँचे आवाज़ आई, “प्रणाम सर, इधर कहाँ?”
विमल बाबू ने देखा एक पच्चीस साल के युवक ने उनका अभिवादन किया।
विमल बाबू रुक गए। लगा इस लड़के को देखा है कहीं।
”बरहरवा से आ रहे हैं, बोरियो जाना है। बस स्टैंड जा रहे हैं।”
“ये हमारे कॉलेज के विमल बाबू हैं,” युवक ने अपनी पत्नी से कहा।
“प्रणाम सर!” युवती ने प्रणाम किया।
“हमें भी लगा सर जाने पहचाने से लगते हैं। आप कभी दुमका गए हैं सर एथलेटिक इवेंट में कॉलेज टीम लेकर?” युवती ने पूछा।
“हाँ कई बार। लगातार कई वर्षों तक अपने कॉलेज की टीम लेकर दुमका, देवघर, मधुपुर गए हैं।”
“मैं दुमका कॉलेज की बेस्ट एथलीट रह चुकी हूँ सर। आपके कॉलेज की मीना मुर्मू मेरी दोस्त है।”
“अरे वाह! मीना मुर्मू अच्छी तीरंदाज़ है,” विमल बाबू ने जवाब दिया।
“देखिए सर कितना सुंदर संयोग है। इसी मार्च महीने में हम दोनों ने शादी की है,” युवक ने कहा।
“आप दोनों को मेरा आशीर्वाद और शुभकामनाएँ।”
दोनों की सुंदर जोड़ी और व्यवहार देख विमल बाबू को बहुत ख़ुशी हुई।
“चलिए सर आपको स्टैंड तक पहुँचा देता हूँ,” युवक ने कहा।
“तुम यहीं रुको। मैं दो मिनट में सर को पहुँचा कर आता हूँ,” युवक ने अपनी पत्नी को कहा।
“आइए सर,” उसने अपनी बाइक स्टार्ट की।
विमल बाबू युवक की श्रद्धा और संस्कार देख पुलकित हो गए। बचपन में पढ़ी डोमन साहू समीर का लेख याद आ गया, ‘आदिवासियों की कुछ अच्छाइयांँ’।
युवक ने विमल बाबू को बस स्टैंड पहुँचा कर कहा, “अगर पत्नी के साथ मेरी माँ रहती तो आपको बोरियो पहुँचा देता सर।”
“इतना ही बहुत हुआ बाबू, एक रिटायर्ड कर्मी के प्रति आपका सम्मान देख आपके माता-पिता के चरणों में प्रणाम करता हूँ,” विमल बाबू बोले।
युवक ने विमल बाबू को प्रणाम कहकर बाइक घुमा लिया और कहा, “चलते हैं सर।”
एक आदिवासी युवक के संस्कार की मन ही मन प्रशंसा की विमल बाबू ने और मान गए कि वास्तव में आदिवासी लोग सहज, सरल और कृतज्ञ होते हैं।
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