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निर्मल कुमार दे – क्षणिका – 002

 

गुज़रे ज़माने की बात हो गई
किसी को ख़त लिखना
अब ईमेल व्हाट्सएप और मैसेंजर ने 
संबंधों की उष्णता को
तब्दील कर दिया है खानापूर्ति में
ना माधुर्य, ना एहसास
ना स्पर्श की सुखद अनुभूति। 

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