आत्मा की तृप्ति
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे15 Jun 2023 (अंक: 231, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
“आज श्राद्ध कर्म संपन्न हो गया। ब्राह्मण भोज के बाद हित कुटुंबों ने भी भोज में शरीक होकर अपना फ़र्ज़ निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।”
“वो तो देख ही रहे हैं। ख़र्च भी बहुत हुआ होगा।”
“हाँ, इसमें कोई शक नहीं। पचास-साठ हज़ार रुपये तो ज़रूर ख़र्च होंगे। दिवंगत आत्मा की तृप्ति के लिए इतना कुछ तो करना ही पड़ता है।”
“लेकिन पचास-साठ रुपये का इंतज़ाम नहीं हो पाया बेचारा रामू के इलाज के लिए। तीन दिन की बेहोशी में ही उसने सब माया त्याग दी।”
“उम्र भी हो गई थी और बच भी जाता तो चलने-फिरने के लायक़ नहीं रहता। लकवा मार गया था।”
मैं आगे और कुछ क्या कहता? रामू की तृप्त आत्मा हँस रही होगी, मुझे ऐसा लगा।
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