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बुड़बक

 

चुनाव का दिन था। मतदान करने का समय लगभग समाप्त होने जा रहा था। बूथ पर लोगों की संख्या नगण्य थी। 

बूथ के बाहर एक बूढ़े के पास जाकर नेता टाइप के एक युवक ने कहा, “की हो चाचा वोट दे देली ना? 

बूढ़े ने कोई जवाब नहीं दिया। 

“अभियो टैम है। चल वोट दे दे। आपन अधिकार!”

“बुड़बक समझीं ही की? कुछ मिलतो तब न। पिछली बेरी मुखिया के वोट में घर पिछूं एक-एक हज़ार देल होलो। अबकी बेर छूंछे . . .।”

“तोर मर्ज़ी!”

“सब पैसा खाय गेली अबकी बार!” बूढ़े ने कहा। 

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टिप्पणियाँ

सरोजिनी पाण्डेय 2024/05/30 10:40 AM

वाह निर्मल जी ,मज़ा आगया , हम तो जीवन भर के बुड़बक हैं हर चुनाव में बिना कुछ पाए मतदान करते हैं।ग्रामीण हमसे अधिक चतुर है कभी मांस ,कभी मदिरा ,कभी नकद टनाटन कैश पाकर ही वोट देते हैं। इस बार क्या हुआ ट्रैकों में लदा पैसा किस काम आया होगा ?यह विचार नहीं है!

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