घोड़े की सवारी
कथा साहित्य | लघुकथा निर्मल कुमार दे15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
"कैसी हो बेटी?"
"ठीक हूँ पापा, आप कैसे हैं?"
"मैं भी ठीक हूँ। क्या कर रही हो?"
"निनि की तेल मालिश कर रही हूँ। बड़ी चंचल है। टुकुर-टुकुर देखती है। लगता है, सब समझती है," नंदिता ने कहा।
"अभी तो चार महीने की ही है तुम्हारी बेटी। बड़ी होने दो बिल्कुल तुम्हारे जैसी होगी। तुम्हें अपना बचपन याद है बेटा?"
"हाँ पापा, आप को घोड़े बनते देख ख़ूब ख़ुश होती थी। सवारी करने में ख़ूब मज़ा आता था," नंदिता हँसने लगी।
"बरसों हो गए बेटी तुम्हें देखे। दामाद जी से कहना पापा याद करते हैं," आँखों की नमी को पोंछते हुए बुज़ुर्ग पिता ने मोबाइल रख दिया।
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पाण्डेय सरिता 2021/10/20 10:09 PM
एक पिता-पुत्री के संवाद पर बढ़िया कहानी