सफ़र मेरा सुहाना हो गया
काव्य साहित्य | कविता निर्मल कुमार दे15 Jul 2023 (अंक: 233, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
कितनी कठिन थी डगर
पर हिम्मत कम नहीं थी
चाह थी एक हमसफ़र की
और तुम साथ आ गई
सफ़र मेरा सुहाना हो गया।
घोर अमावस में
तुम दीपशिखा सी जली
बनके मेरी ताक़त
हमसाया बन मुस्काती रही
तुम जो हम क़दम बनी मेरी
सफ़र मेरा सुहाना हो गया।
अस्त व्यस्त था जीवन मेरा
शूलों से भरी थी डगर
अनिश्चयता के अँधेरे को
चीरकर तूने मशाल जलाई
हमराज़! मेहरबान मेरे!
तुम ही ज़िन्दगी मेरी।
तेरा साथ जो मुझे मिला
सफ़र मेरा सुहाना हो गया।
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