इंतज़ार
काव्य साहित्य | कविता मुकेश कुमार ऋषि वर्मा15 Jul 2019
पल-पल किया इंतज़ार
सदियों से बीते क्षण-क्षण
कर-कर इंतज़ार
पतझड़ भी बीत गया।
आ गया सावन
मन भावन
तुम मिलो प्रिये...
इस तरह
टूटे न मिलन का सिलसिला।
तेरे इंतज़ार में,
बर्बाद हुआ योवन
सपने, सपने बनकर रह गये
हक़ीक़त से हुआ न सामना
कितनी बीती बरसातें
कोरी-कोरी रातें।
किया भरोसा
टूटी न आशा
पर तुम न समझे
सम्बन्धों की परिभाषा
सहकर हर उतार-चढ़ाव
छलनी हो गया सीना
मत पूछो मेरा जीना
मर-मर कर जीना।
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