बस्ती में उजाला
बाल साहित्य | किशोर साहित्य नाटक डॉ. आरती स्मित15 Oct 2022 (अंक: 215, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
पात्र:
दो किशोरी: चारु और निदा
दो किशोर: हरमन, हैरी
बस्ती के बच्चे: डुगगु और कम्मों (6 वर्ष), सिमरन (8 वर्ष), गोलू और हरतेश (8 वर्ष), नितेश (12 वर्ष), काजल और ममता (12 वर्ष)
बस्ती के स्त्री-पुरुष के रूप में कुछ किशोर।
दृश्य 1
(रेलवे लाइन के पास बसी बस्ती, जहाँ रह-रहकर रेलगाड़ी की आवाज़ गूँजती है। बस्ती में सन्नाटा है। कहीं-कहीं एक दीया टिमटिमा रहा है। शाम ढल चुकी है। हवा में हल्की ठंडक है। कहीं दूर से कोई रिक्शा, मोटर की आवाज़ आ रही है। चार किशोर चारू, निदा, हरमन और हैरी बस्ती में आते हैं। उनके हाथ में बड़े-बड़े पैकेट हैं। इधर-उधर नज़र दौड़ाते हैं, मगर कोई नज़र नहीं आता। इतने में बस्ती की सिमरन नज़र आती है। चारु उसे इशारे से बुलाती है।)
चारु:
क्या नाम है तुम्हारा?
सिमरन:
सिमरन।
चारु:
बहुत प्यारा नाम है। क्या तुम बस्ती के बच्चों को बुला लाओगी। हम तुम्हारे लिए कुछ लेकर आए हैं।
(चारु की बात सुनकर सिमरन ख़ुश होती हुई वहाँ से दौड़कर जाती है।)
सिमरन:
(दौड़ती हुई मंच पर आती है और सबको आवाज़ देती है)
अरी कम्मो, निक्की, डुग्गू, हरतेश, गोलू कहाँ हो सब? जल्दी बाहर आओ। काजल दी, ममता दी . . . आओ, जल्दी आओ . . .
(हल्का प्रकाश धीरे-धीरे फैलता है। इतना कि पात्र दिख सकें।)
काजल:
क्या है री सिम्मी? क्यूँ इतना चिल्ला रही है?
ममता:
बात क्या है?
सिमरन:
(ख़ुश होकर)
अरी, दो सुंदर-सी दीदी आई है। . . .और – दो भैया भी।
कम्मो:
(मुँह बिचकाकर)
तोऽऽऽ?
सिमरन:
अरे मैडम सब बच्चों को बुला रही है। उस भैया के हाथ में बड़ा-सा पैकेट है। बुआ कह रही थी, हमारे लिए सामान है। चल ना!
निक्की:
ऊँह! तुम लोग जाओ! ये साहेब लोग बड़ा पैकेट ही दिखाते हैं . . .
सिमरन:
हूंह, तेरे से तो कुछ कहना ही बेकार है। अरी, आज दिवाली है, भूल गई क्या? देखा नहीं, सड़क के उस पार शहर कितना सजा है! रंग-बिरंगे बल्ब और झालर!! जगमग करती रोशनी!!
हरतेश:
सड़क के दोनों तरफ़ मिठाइयाँ बिक रही हैं।
गोलू:
(मुँह में भर आए पानी को गटकते हुए)
हाँ, ढेर
सारी मिठाइयाँ और क़ीमती चॉकलेट सुंदर-सुंदर डिब्बों मेंनिक्की:
(उदास स्वर में)
और हमारे घर दो दीया भी नहीं।
काजल:
अरी, वहाँ तो मालिकों के मकान हैं। हम जैसे रद्दी और काग़ज़ चुनने वाले बच्चे और रिक्शा चलाने वाले, मज़दूरी करने वाले लोगों के लिए वो सब नहीं। लालच मत कर!
सिमरन:
ओह, चल न जल्दी!
सभी:
हाँ-हाँ चल
(प्रकाश बढ़ता हुआ कुछ दूर तक, जहाँ किशोर-किशोरी खड़े हैं)
चारु:
आए नहीं बच्चे! क्या हुआ? बस्ती में चलकर देखें?
निदा:
इतने अँधेरे में कहाँ जाओगी? ओह, इतनी अँधेरी बस्ती मैंने कभी नहीं देखी!
हरमन:
वाहे गुरु सब पर किरपा करे। आज दिवाली के दिन भी देखो, बस्ती में कैसी उदासी छाई है?
निदा:
(थोड़ा आगे बढ़कर आवाज़ देती है)
कोई है? – कोई है?
चारु:
वो देखो, बच्चे इधर ही आ रहे हैं।
(बच्चे उन्हें घेरकर खड़े हो जाते हैं। कुछ स्त्री-पुरुष भी वहाँ आ-आकर इकट्ठे हो जाते हैं)
हैरी:
सारे बच्चे एक तरफ़ खड़े हो जाइए। हम आपके साथ मिलकर दीये और मोमबत्तियाँ जलाएँगे, ठीक है ना!
डुग्गू:
आज हमारा भी घर जगमग होगा!
सिमरन:
(चहकते हुए)
हाँ, हमारी भी मनेगी दिवाली।
निक्की:
पूरी बस्ती में उजाला होगा।
हरतेश:
हम भी खाएँगे मिठाइयाँ
कम्मो:
हम भी जलाएँगे फुलझड़ियाँ
(निदा और चारू थाल में दीये सजाती है। हरमन पुरुषों को मोमबत्तियाँ देता है।)
निदा:
आओ-आओ, घरों में दीये सजाओ।
(स्त्रियाँ आगे बढ़ती हैं और निदा के साथ आसपास दीये सजाती हैं।)
चारु:
आओ बच्चो, आओ। अब मुँह मीठा करने की है बारी . . .।
(बच्चों को मिठाइयाँ बाँटती है, फिर किसी बड़े को डब्बा दे देती है)
ये आप सब के लिए।
हैरी:
(फुलझड़ी निकालता हुआ)
अब मस्ती टाइम!
(सभी के हाथ में एक-एक फुलझड़ी देता है। बच्चे फुलझड़ी जलाकर ख़ुश होते हैं।)
हैरी:
पटाखे से प्रदूषण बढ़ता है, इसलिए हम पटाखे नहीं जलाएँगे, मगर चॉकलेट ख़ूब खाएँगे—क्यों ठीक है ना!
बच्चे:
(ख़ुशी से)
हाँ जी, हाँ!
(हैरी सबको चॉकलेट बाँटता है। बच्चे उसे उलट-पलट कर देखते हैं। रैपर को सहलाते हैं)
कम्मो:
हाँ, यही तो हम खाना चाहते थे।
सिमरन:
हाँ, चखना चाहते थे स्वाद हम भी।
बाक़ी बच्चे:
हाँ, हाँ हम सब भी।
चारु:
और बस्ती जगमगाएँगे . . . क्यों ठीक है ना!
बच्चे-स्त्रियाँ-पुरुष:
हाँ, जी, हाँ! हाँ, जी, हाँ!
(हैरी संगीत बजाता है, बच्चे नाचते-उछलते हैं। सभी ख़ुश हैं।)
चारू:
आप सभी को दिवाली मुबारक!
काजल:
दीदी, इस बार तो हमारी दिवाली सचमुच मुबारक हो गई। आपको भी मुबारक!
बस्ती के सभी लोग:
आप सब को भी।
(चारु, निदा, हरमन और हैरी हाथ हिलाते हुए विदा लेते हुए उनसे दूर जाते हैं। बस्ती के लोग हाथ हिलाते हुए . . .)
(प्रकाश चारों दोस्तों पर केंद्रित)
चारु:
आज अपनी दिवाली भी सचमुच यादगार हो गई। कितना अच्छा लगा!
हरमन:
हाँ, सचमुच सुकून मिला दिल को। हमारे रुपए किसी नेक काम में गए।
निदा:
हाँ, और ये भी अच्छा हुआ, कोर्ट ने पटाखे पर रोक लगा दी। कम से कम करोड़ों रुपए फूँके जाने से तो बच जाएँगे।
हैरी:
और प्रदूषण की स्थिति भयावह होने से भी।
चारु:
आज हम यह संकल्प लें कि अपनी जेबख़र्च और समय बचाकर किसी की कुछ मदद करेंगे। जैसे: ग़रीब बच्चों का स्कूल ख़र्च, उन्हें मुफ़्त में पढ़ाने का काम।
निदा:
हाँ, हम यह संकल्प लेते हैं। हम ऐसी अँधेरी बस्तियों में रोशनी लाएँगे।
हरमन:
हाँ, शिक्षा के दीप जलाएँगे।
हैरी:
अँधेरा होगा दूर . . . होकर मजबूर!!
चारों एक साथ हाथ पर हाथ रखकर संकल्प लेते हैं।
फेड आउट
दृश्य 2
(चारु और निदा बात करती हुई जा रही हैं। थोड़ी दूर पर निक्की, कम्मो, सिमरन और ममता रद्दी चुनती हुई दिखाई देती हैं। उनके बाल अस्त-व्यस्त और गंदे हैं। कपड़े भी फटे और गंदे हैं। वे चारु को देखकर नज़रें चुराती हैं। मगर कम्मो मुस्कुरा देती है। चारू उसे ग़ौर से देखती है और पहचान जाती है। चारु-निदा उनके पास जाती हैं।)
चारु:
तुम उस सड़क पार वाली बस्ती में रहती हो ना!
(कम्मो सहित सभी बच्चे सिर हिलाकर हामी भरते हैं)
निदा:
तुम लोग इस रद्दी का क्या करोगी?
निक्की:
वो-वो . . .
चारु:
छोड़ निदा! . . . क्या तुम सब स्कूल नहीं जाते?
हरतेश:
बाहर से देखा है। भीतर कभी नहीं गए।
चारु:
मैं ले चलूँ तो चलोगे?
सिमरन:
अम्मा से पूछेंगे।
निदा:
तुम लोगों को काम करने कौन भेजता है?
(बस्ती के बच्चे एक-दूसरे का मुँह देखने लगते हैं। कोई कुछ नहीं कहता। निदा दुखी दिखाई देती है और रह-रहकर क्रोध उभर आता है)
निदा:
क्या उन्हें नहीं मालूम . . .?
चारु:
(इशारे से उसे चुप करते हुए, बच्चों से पूछती है)
तुम लोग कितने बजे तक कचरा बीनते हो।
ममता:
दोपहर तक
निक्की:
कभी-कभी पूरे दिन! अगर कुछ नहीं मिला तो दूर तक!
चारु:
ठीक है। हम बस्ती में किसी दिन आएँगे। हम्म, रविवार को . . . 3 बजे। बोलो, रहोगे बस्ती में?
सिमरन:
ठीक है
(चारु-निदा आगे बढ़ जाती है। कुछ दूर पर एक बेंच पर बैठ जाती हैं।)
निदा:
(दुखी स्वर में)
ये कैसा बचपन? क्या ये हैं कल का हिंदुस्तान?
चारु:
निदा, दुखी होने से कुछ नहीं होगा। हमें ये सोचना होगा कि हम अपनी पढ़ाई करते हुए उनके लिए क्या कर सकते हैं! संडे चलोगी मेरे साथ?
निदा:
हाँ, ज़रूर! हरमन और हैरी को भी ख़बर कर दूँगी।
(फिर दोनों देर तक बातें करती हैं। दर्शक को सुनाई नहीं देता। दोनों उठ खड़ी होती हैं और चलती हुई मंच से बाहर निकल जाती हैं।)
फेड आउट
बस्ती का दृश्य
(बच्चे साफ़-सुथरे हैं। बच्चे चारू और निदा को घेरकर खड़े है। चारू उन्हें पढ़ाई की बात समझा रही है। बच्चे हामी भरते हैं। निदा उन्हें किताब देती है। बच्चे उत्सुकता से किताब पलटते हैं। निदा-चारू उन्हें चित्र दिखाकर समझा रही हैं। बच्चे कॉपी पेंसिल लेकर बैठे हैं। हैरी और हरमन पढ़ा रहे हैं, लिखना सिखा रहे हैं। बच्चे पढ़-लिख रहे हैं, कुछ सुना रहे हैं। यही दृश्य कई बार। कई दिनों के क्रम के रूप में। मंच पर फैलते-सिमटते प्रकाश से दिन बदलने का संकेत मिलेगा।)
चारु:
(बच्चों से)
आज निदा और मैं बहुत ख़ुश हैं कि तुम लोगों ने अपना नाम लिखना सीख लिया। इसी तरह मेहनत करोगे तो जल्दी ही किताब पढ़ने लगोगे।
निदा:
हाँ, फिर पास वाले स्कूल में नाम लिखा देंगे। अच्छा बच्चों बाय। अपना होमवर्क करते रहना . . .
(दोनों जाती हैं)
फेड आउट / फेड इन
(बच्चों के पढ़ने-पढ़ाने के पुराने दृश्य की आवृति)
दृश्य 3
(प्रकाश पूरे मंच पर)
हैरी:
चारु, आज तुम्हारा सपना पूरा हुआ। आख़िरकार बच्चों का सरकारी स्कूल में एडमिशन हो ही गया। हालाँकि काग़ज़ी कारवाई के कारण मुझे यह मुश्किल लग रहा था।
चारु:
सिर्फ़ मेरा नहीं, हमसब का। हमने मिलकर संकल्प लिया था और मिलकर ही पूरा किया है। और तुमने सही कहा। सरकारी कामों में काग़ज़ी कारवाई के कारण कई बार सही हाथों में चीज़ें नहीं पहुँच पातीं। यह भी एक कारण है कि ऐसे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते।
निदा:
हाँ चारु, सही कहा तुमने। मगर हैरी भी सही कह रहा है, तुमने ही रूप-रेखा बनाई और हम सबने इसे साकार किया। आगे भी ऐसे काम करते रहेंगे।
हरमन:
मुझे भी बहुत अच्छा महसूस हो रहा है। एक विश्वास जगा है कि हम भी समाज के लिए कुछ कर सकते हैं।
चारु:
हाँ, वह भी बिना बड़ों की मदद लिए; बिना उन्हें परेशानी में डाले। मैं रूमी आंटी को थैंक यू बोलना चाहूगी। उनकी प्रेरणा और सहयोग के बिना मैं शायद कमज़ोर पड़ जाती। उन्होंने ही मम्मी को राज़ी किया।
निदा:
हाँ, मैंने भी अब्बू को बता दिया था कि संडे को बस्ती में पढ़ाने जाना है। उन्होंने भी मना नहीं किया।
हैरी:
मेरे पापा भी जानकर ख़ुश हुए और ब्लेसिंग दी।
हरमन:
सब वाहे गुरु की किरपा है।
चारु:
दोस्तों, तो फिर क्यों न आज अपने संकल्प को दोहरा लें और किसी नई बस्ती में अपना संडे बिताएँ।
(हाथ बढ़ाती है)
निदा:
मैं साथ हूँ।
(चारु की हथेली पर अपनी हथेली रखती है।)
हरमन:
मैं भी।
हैरी:
मैं भी।
(सभी एक साथ हथेली रखकर बोलते हैं: अगला संडे – मिशन ‘अँधेरी बस्ती में उजाला’)
फेड आउट
दृश्य 4
(बस्ती के बच्चे ड्रेस पहने और बैग लिए चल रहे हैं। बस्ती की स्त्रियाँ उन्हें हाथ हिला कर विदा कर रही हैं। बच्चे आगे बढ़कर।)
ममता:
अब हम भी पढ़ेंगे।
काजल:
फिर अपनी माँ को पढ़ाएँगे।
निक्की:
अँधेरा दूर भगाएँगे।
हरतेश:
होगा उजाला बस्ती में . . .
(बच्चे धीरे-धीरे मंच से बाहर जाते हैं)
समाप्त
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टिप्पणियाँ
सुधीर कुमार प्रोग्रामर 2022/10/09 07:04 AM
सच का दर्शन बहुत मार्मिक, रोचक और आन्दोलित करने वाला बाल नाटक अभिनंदन!
कृपया टिप्पणी दें
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Sudershan ratnakar 2022/10/14 09:25 PM
बहुत सुंदर संदेश देता प्रेरणादायी बाल नाटक। बहुत बहुत बधाई।