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इक्कीसवीं सदी के नाम पत्र 02

 

प्रिय इक्कीसवीं सदी! 

शुभ स्नेह! 

आज तुमने 23 वर्ष पूरे कर लिए। पत्र पाकर हैरान न हो, अपने 23वें वर्ष से तुमने मेरे जीवन को कई उपहार दिए। उन सबके के लिए तुम्हें शुक्रिया कहने का इससे बेहतर अवसर न होगा, जब तुम अपने जीवन के 24वें पड़ाव पर क़दम रखने की तैयारी में हो और यह जन्मदिन लगभग समूचा विश्व मना रहा है, हालाँकि बहुत कुछ क्षरण हुआ, मानवीय मूल्य टूटे-बिखरे, देखते ही देखते शहर के शहर मलबे के ढेर में बदलते रहे। अपनी धरती भी किसी न किसी दर्द से भरी ही रही, फिर भी सब भुलाकर मुस्कुराने का मानवीय गुण ही हमें जीवट और जिजीविषु बनाता है। 

मैं भी क्या बात लेकर बैठ गई। आज तो बस अपनी और अपनों की वे बातें करूँगी, जो पलों में गूँथकर तुमने दिए; जो पल मेरे लिए नायाब तोहफ़ा बन गए। अनुभवों के उपहार, आत्मिक सम्बन्धों के उपहार, विवेक, धैर्य, संयम को साधने की कला के उपहार, क्रोध और भय को जीत लेने का उपहार। अभी रुको, अभी तो तुम्हारी देन की लंबी सूची है मेरे पास। साहित्य के क्षेत्र में योगदान के अनेक अवसर, समाज के विविध तबक़ों, विविध विचारों, अवस्थाओं और क्षेत्रों के लोगों के प्रति समझ में विस्तार, दृष्टिकोण को व्यापकता, सकारात्मक ऊर्जा का उन्नयन, पहले की अपेक्षा अधिक बहुविध सहयग की योग्यता आदि-आदि कितने ही उपहारों से तुमने भर दिया। इन उपहारों में कुछ ख़ास उपहार हैं यात्राओं के वे सभी अवसर, उनसे जुड़ी अनुभूतियाँ-स्मृतियाँ, जिन्होंने सोच को गहराई दी और क़लम को कभी न सूखने वाली स्याही। 

जनवरी की शीतलहरी से शरीर की क़ुलफ़ी जमाती सुबह, फरवरी की कुनकुनी ठंड भरी या मार्च की मीठी सुबह, अल्सुबह, जब चिड़िया भी सिकुड़ी रहती है, मगर सोई दिल्ली अँगड़ाई लेने लगती है, उस समय अक्षरधाम, यमुनाबैंक, विशेषकर मंडीहाउस और क्नॉट प्लेस की ख़ुमारी भरी आँखों वाली दिल्ली की गोद में झड़ते पत्तों, खिलते-मुस्कुराते फूलों, पत्तों, महकती क्यारियों, भोर की तान छेड़ते कुछ परिंदों, उषा की पहली किरण का क्षितिज पर आने, सखियों संग पग-पग आगे बढ़ते हुए मुझ तक आने और मेरा माथा चूम लेने की वह कोमल अनुभूति पूरी तरह जागी दिल्ली से मिलकर होने वाली अनुभूति से एकदम अलग और निराली थी। मुँह अँधेरे पल से लेकर आसमान में दो-तीन सीढ़ियाँ चढ़ जाने तक का सूरज का साथ, बीच के कालखंडों में ख़ुद को खोजने-पाने, भरपूर जीने और प्रकृति के पल-पल बदलते रूप के साथ अनूठा सम्बन्ध क़ायम करने और सुकूनमंद होने का वह अवसर अब ख़ास लगने लगा है—बेहद ख़ास! 

कर्मक्षेत्र की ओर देखूँ तो मैं तुम्हें अशोक जी से जोड़ने के लिए भी तुम्हें शुक्रिया कैसे न कहूँ जिनकी माँग और जिनके श्रम से एक साथ कई विधाओं में पुस्तकें आईं। निज लेखन का यह वर्ष अद्विक प्रकाशन के नाम रहा। फरवरी-मार्च में आयोजित पुस्तक मेले में पाठक मित्रों के स्नेह ने अभिभूत किया। 

अप्रैल में पहली बार माँ-बेटी ने सागर की लहरों के साथ जो दस दिन बिताए वे कई मायनों में आनंददायक रहे और स्मृति के खज़ाने का हिस्सा बन गए। एक लंबे अंतराल के बाद, दूसरी दृष्टि से पहली बार केवल हम दोनों ने ख़ुद को बंधी-बँधाई दिनचर्या से मुक्त कर सागर को जिया, पल-पल जिया, भरपूर जिया। 

अप्रैल से जून भी कम ख़ास नहीं रहा। स्मित परिवार एक ही डोर से बँधा है, किसी एक को अलग करके बात ही नहीं की जा सकती, फिर बात किसी सपने को सच होता देखने के लिए मशक़्क़त करने की हो तो वह की ही जाएगी। स्मित परिवार के लिए मित्रों एवं शुभचिंतकों की दुआओं का साथ रहा ही, कई नाम हैं—करुणा पांडे, अरुण–माधवी हांडा, अनिल मीत आदि कई। पूरी तरह साथ होने, उनके सुख-दुःख और हौसलों की उड़ान को सफल बनाने वाले साथियों में तीन नाम एक साथ आते हैं—अर्शदीप सिंह, स्नेह-सुधा एवं हरीश नवल, नीरा एवं सुमन घई। ये ऐसे नाम हैं जिन्हें हमारे जीवन से अलग करके सोचना कठिन होगा। जून में भाई सरदार मीना के घर राजस्थान में विवाहोत्सव में शामिल होना और वहाँ अर्चना उड़ॉव से मिलना सुखद रहा। 
तुमने इस वर्ष अगस्त की मेरी यात्रा और मेरे जन्मदिन को भी ख़ास बना दिया। मेरी माँ और मेरी बेटी ने मिलकर केक कटवाया। परिवार की तीन पीढ़ियों का साथ पहली बार और उपस्थिति पाँच पीढ़ियों का साथ क्या ही आनंददायक रहा! 

यह वर्ष इस मायने में भी ख़ास रहा कि कुछ सम्बन्ध पहले से अधिक दृढ़ हुए, कुछ कमज़ोर रिश्ते नेस्तनाबूद हुए मगर फिर भी उसकी लकीर को मिटाने की कोई चाह नहीं पनपी। बुद्ध याद रहे और हर रिश्ते को उनकी निजी बेहतरी के लिए दुआएँ मुक्त हृदय से निकलती रहीं। इसका लाभ यह हुआ कि हृदय भावों-विचारों की संकीर्णता से मुक्त रहा। कुछ नए सम्बन्ध भी बने। कुछ नए सम्बन्ध दिल में अपनी जगह बना गए, कुछ मुहाने पर ही रह गए। सितंबर में प्रयागराज एवं सितंबर-अक्टूबर में पंचकुला से पिंजौर तक की साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़ी यात्रा ने ऐसे कई रिश्ते दिए। कुछ ऐसे भी रिश्ते जो अपनी उपस्थिति का शोर नहीं मचाते, मगर अपनी जगह भी नहीं छोड़ते। उन सबसे जुड़ी अनुभूतियाँ वे सौग़ात हैं जो जीवन को नई समझ के साथ आगे जाने की राह देती हैं। 

इन यात्राओं ने भी प्रकृति का स्नेह और सौंदर्य न्योछावर किया। प्रयागराज की यात्रा महेश चट्टोपाध्याय जी के बुलावे पर हुई, वहाँ प्रो. अवधेश प्रधान के वत्सलहृदय एवं मृदु स्वभाव को समझने में मदद मिली। इंटर कॉलेज के व्याख्यातागण में से जगत जी एवं उनका परिवार, नर नारायण जी क़रीब हो गए। मेरे कविता संग्रह ‘निःशब्द हूँ मैं’ के प्रकाशक अभिषेक जी का सादा-सच्चा व्यवहार भी स्मृति में अपनी जगह बना गया। सुरेन्द्र पाल जी के आमंत्रण पर पंचकुला एवं पिंजौर की यात्रा न सिर्फ़ कार्यक्रम की वजह से ख़ास रही, बल्कि पिंजौर में अवस्थित फार्म हाउस के नैसर्गिक वातावरण ने जो एकान्तिक क्षणों में प्रकृति को जीने के अवसर दिए वे अनमोल हैं। गीता पाल जी, राम मोहन राय जी, प्रो. अजीत झा आदि कई नाम महज़ नाम नहीं रहे मेरे लिए।  अक्टूबर से दिसंबर का समय कुछ अपनों के घर को सूना कर गया तो कुछ के घर राहत लौटी। दुख और राहत के बीच ख़ुद को बाँटते हुए भी तुम्हारे लिए दुआएँ ही निकलीं क्योंकि तुमने दिया है—बहुत दिया है। स्मित नीड़ की जगमगाहट बढ़ी है। कोई उड़ान भर पाया, कोई अपने हिस्से के आसमान को छूकर नई उड़ान के लिए लौट आया। एकांतता जीवन को गहराई से समझने का अवसर देती है और जब सम्बन्ध गहरे हों तो व्यक्ति कभी अकेला नहीं होता, तुमने यह भी इसी वर्ष सिखाया। मेरे लिए यह संतोषजनक है कि मैंने तुम्हारे द्वारा सौंपे ऐकांतिक क्षणों को भरपूर जिया और कर्मरत रहकर उन्हें सार्थकता प्रदान की। 

प्रिय सदी! किन-किन बातों के लिए शुक्रिया अदा करूँ! एक जिज्ञासा है, सच–सच बतलाना! क्या तुम इस वर्ष मेरे भावों-विचारों और कर्मों से संतुष्ट हो? क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि मैंने तुम्हारे जीवन के इस हिस्से को–इस 23वें वर्ष को व्यर्थ न गँवाकर उसे सार्थक बनाया? . . . यदि तुम्हें मेरे द्वारा बिताया यह वर्ष सफल और सार्थक लगा तो बस यही विनती है कि अब जो कुछ क्षणों में नए वर्ष में क़दम रखोगी, मेरे लिए सार्थक पलों की माला रखना और दुआ करना कि मेरे हाथों एक भी पल की अकारण मृत्यु न हो। मुझे मिले सारे पल सहयोगी स्वभाव के हों और ख़ुशहाल जीवन पाएँ। 

तुम्हारा अगला वर्ष विश्व के लिए शान्ति और सौहार्द लेकर आए, यही मंगलकामना है। पत्र बहुत लंबा हो गया है। धैर्यपूर्वक पढ़ना और उत्तर देना। तुम्हारा जीवन शुभकारी हो! 

तुम्हारी ही
आरती स्मित
 

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