माँ
काव्य साहित्य | कविता डॉ. आरती स्मित15 May 2022 (अंक: 205, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
(२००३ में आकाशवाणी से प्रसारित कविता, ‘काशी रत्न सम्मान’ २०११ प्राप्त कविता संग्रह ‘अंतर्मन’ में संकलित एवं ‘सेतु पुरस्कार’ २०१६, अमरीका से पुरस्कृत; संकलनकर्त्री: अंजु हुड्डा)
माँ!
तुम मंदिर में स्थापित
देव प्रतिमा हो
पूजा हो, अर्चना हो
ईश्वर की वंदना हो
माँ!
तुम आस्था हो मन की
श्रद्धा हो जीवन की
आत्मा की शक्ति हो
भगीरथ की भक्ति हो
माँ!
तुम शीत की धूप हो
ग्रीष्म की छाँव हो
सभ्यता की हो नगरी
संस्कार का गाँव हो
माँ!
तुम गीत हो, नाद हो
शिशु का आह्लाद हो
धैर्य हो, साहस हो
गृहिणी तापस हो
माँ!
तुम डोर हो—
रिश्तों की भावों की
शहरों की गाँवों की
मैंने देखा है तुम्हें
जेठ की धूप में जलते
मुसीबत की आग में चलते
पर हमको सुख देती हो
सब पीड़ा हर लेती हो
माँ!
तुम ममता की धारा हो
डूबते का किनारा हो
दुर्बल हाथों को देती सहारा
तुम-सा न कोई प्यारा
तुमसे ही स्वप्न हमारे
तुम तक ही कल्पनाएँ
जीवन का गति हो तुम
तुम्हीं जीवन का आधार
तेरे चरणों में स्वर्ग बसा
तेरा आँचल स्वर्ग-द्वार!
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