अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

माँ 


(२००३ में आकाशवाणी से प्रसारित कविता, ‘काशी रत्न सम्मान’ २०११ प्राप्त कविता संग्रह ‘अंतर्मन’ में संकलित एवं ‘सेतु पुरस्कार’ २०१६, अमरीका से पुरस्कृत; संकलनकर्त्री: अंजु हुड्डा


माँ! 
तुम मंदिर में स्थापित 
देव प्रतिमा हो 
पूजा हो, अर्चना हो 
ईश्वर की वंदना हो
 
माँ! 
तुम आस्था हो मन की 
श्रद्धा हो जीवन की 
आत्मा की शक्ति हो 
भगीरथ की भक्ति हो
 
माँ! 
तुम शीत की धूप हो 
ग्रीष्म की छाँव हो 
सभ्यता की हो नगरी 
संस्कार का गाँव हो 
 
माँ! 
तुम गीत हो, नाद हो 
शिशु का आह्लाद हो 
धैर्य हो, साहस हो 
गृहिणी तापस हो 

माँ! 
तुम डोर हो—
रिश्तों की भावों की 
शहरों की गाँवों की 
मैंने देखा है तुम्हें 
जेठ की धूप में जलते 
मुसीबत की आग में चलते 
पर हमको सुख देती हो 
सब पीड़ा हर लेती हो 
 
माँ! 
तुम ममता की धारा हो
डूबते का किनारा हो 
दुर्बल हाथों को देती सहारा 
तुम-सा न कोई प्यारा 
तुमसे ही स्वप्न हमारे 
तुम तक ही कल्पनाएँ 
जीवन का गति हो तुम 
तुम्हीं जीवन का आधार 
तेरे चरणों में स्वर्ग बसा 
तेरा आँचल स्वर्ग-द्वार! 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख

कहानी

व्यक्ति चित्र

स्मृति लेख

पत्र

कविता

ऐतिहासिक

साहित्यिक आलेख

बाल साहित्य कहानी

किशोर साहित्य नाटक

गीत-नवगीत

पुस्तक समीक्षा

अनूदित कविता

शोध निबन्ध

लघुकथा

यात्रा-संस्मरण

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं